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Monday 10 December 2012

यहां अपना-पराया कोई नहीं


कोलकाता टेस्ट में •ाारत की शर्मनाक हार से पूरा देश स्तब्ध है। विश्व विजेता का ताज अपने सिर में सजाकर घूम रही टीम इंडिया, अंग्रेज बल्लेबाजों के संयम के सामने नौसिखिओं की तरह जूझती नजर आई। मनमानी पिच के बावजूद •ाी धोनी के धुरंधर पानी •ारते नजर आए। अपनी धरती, अपना अंबर होते हुए अब और क्या चाहिए टीम इंडिया को देशवासियों के लिए एक अदद जीत नसीब कराने के लिए। घर के शेर, घर में ही ढेर हो गए। एक तरफ कप्तान धोनी हार का ठीकरा बल्लेबाजों के सिर फोड़ रहे हैं, तो दूसरी तरफ बीसीसीआई सीनियर गेंदबाजों को अलविदा कहकर अपनी नाक बचा रहा है। किसको सही माना जाए, धोनी या बीसीसीआई को। अगर मैदान में खड़े धोनी ने बल्लेबाजों को कोसा, तो बीसीसीआई ने गेंदबाजों को क्यों निकाला या ये कहा जाए कि बीसीसीआई बल्लेबाजों को निकालना ही नहीं चाहता, चाहे बल्लेबाज कितना •ाी टीम का बेड़ा गर्क करते रहें। क्रिकेट की टेÑनिंग लेने वाला बच्चा •ाी बता सकता है कि जिस पिच पर अंग्रेज बल्लेबाजों ने पांच सौ से ऊपर स्कोर पहुंचाया, वही पिच •ाारतीय बल्लेबाजों के लिए बंजर हो गई। बात साफ है कि दो टेस्ट मैचों में लगातार हार से नई चयन समिति की •ाी इज्जत दांव पर लग गई है। •ाला हो मीडिया का कि अ•ाी तक उसकी नजर चयन समिति से दूर है। बीसीसीआई द्वारा युद्ध स्तर पर जहीर खान, हर•ाजन सिंह और युवराज को बाहर करना कहीं न कहीं ये दर्शाता है कि इन्हें बलि का बकरा बनाकर, दूसरे बल्लेबाजों की पेशानी में पड़ते बलों को सीधा किया है। चयन समिति ने इन खिलाड़ियों को निकालकर कुछ नया नहीं किया है। खराब फॉर्म से जूझ रहे जहीर को तो इस टेस्ट के बाद बाहर होना ही था, हर•ाजन •ाी काफी दिनों बाद वापसी के बावजूद असर नहीं दिखा पाए। रही बात युवराज की, तो कहीं न कहीं उनको अन्य बल्लेबाजों से कमतर आंका गया। आखिर कब तक बीसीसीआई बूढ़े शेरों को रिकॉर्ड के नाम पर टीम में ठूंसती रहेगी। क्यों करीबियों को टीम के करीब रखा जाता है। आईसीसी की ताजा टेस्ट रैंकिंग के अनुसार कोई •ाी •ाारतीय बल्लेबाज टॉप टेन में जगह नहीं बना पाया है। •ाारतीय बल्लेबाजों की शुरुआत 19वें पायदान से सचिन तेंदुलकर करते हैं। इसके बाद 21वें पर सहवाग और 23वें पर चेतेश्वर पुजारा हैं, जबकि बॉलिंग में प्रज्ञान ओझा एकमात्र •ाारतीय गेंदबाज हैं, जो रैंकिंग में पांचवें पायदान पर हैं। मतलब साफ है कि जिन बल्लेबाजों को बीसीसीआई सजावट के तौर पर टीम में रखकर शो•ाा बढ़ा रहा है, उनमें से एक •ाी टॉप टेन की सूची में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में नाकाम रहा है, जबकि गेंदबाजों की नाक रखते हुए प्रज्ञान टॉप टेन में बरकरार हैं। वर्तमान में चल रहे रणजी मैचों पर यदि गौर फरमाया जाए, तो कई ऐसे बल्लेबाज मिल जाएंगे, जो दोहरा शतक लगाकर शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं। फॉर्म में चल रहे ये बल्लेबाज •ाी बीसीसीआई की चयन समिति की अनदेखी के कारण रणजी तक ही सीमित रह जाते हैं। देश के हालात ऐसे हैं कि राजनीति एक खेल है और खेल में राजनीति है, जिसे आम इंसान सिर्फ जीत-हार तक ही समझ पाता है। इससे ज्यादा नहीं। बीसीसीआई को अपने स्तर और विवेक से फैसले लेने चाहिए। मीडिया की खबरों, किसी खास खिलाड़ी या रिकॉर्ड बनवाने के लिए चयन नहीं होना चाहिए। रिकॉर्ड किसी एक खिलाड़ी की जागीर नहीं होते। ये तो एक निरंतर प्रक्रिया है, जो सिर्फ बदलाव के साथ ही एक-दूसरे से आगे निकलते हैं और बदलाव प्रकृति का नियम हैं।