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Wednesday 12 June 2013

नवाज के लिए कितनी शरीफ है फौज


आसिफ इकबाल
आखिरकार पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान को लोकतांत्रिक सरकार नवाज शरीफ के रूप में मिल ही गई। बुधवार को प्रधानमंत्री पद की शपथ लेते ही नवाज के ऊपर एक ऐसे मुल्क की तमाम अच्छे बुरे हालातों की चुनौतियों से निपटने की जिम्मेदारी बढ़ गई, जो चरम्पथ, भ्रष्टाचार और वित्तीय संकट के दौर से गुजर रहा है।1981 में 32 साल की उम्र में सियासत में पहला कदम रखने वाले नवाज शरीफ 63 साल में तीसरी बार पाकिस्तान के वजीरे आजम बने हैं। नवाज शरीफ की पृष्ठभूमि एक रूढ़िवादी उद्योगपति की रही है, लेकिन पाकिस्तान के उदारवादी तबके में उनकी सराहना खास तीन मुद्दों को लेकर की जाती है। पहला पाक फौज को यहां की सियासत से दूर रखने की उनकी तमाम कोशिशें। दूसरा भारत के साथ संबंध अच्छे बनाने की उनकी मुहिम और तीसरा जम्हूरियत के बचाव में उनका बार-बार उतरना। हालांकि इनमें से ज्यादातर मुद्दों पर उनके ख्याल तब बदले जब 1999 में उनका तख्तापलट कर परवेज मुशर्रफ ने उन्हें निवार्सन पर जाने को मजबूर कर दिया।  नवाज को पीएम की कुर्सी संभाले सिर्फ तीन दिन हुए हैं कि पाकिस्तनी सेना ने अपनी हरकतें दिखानी शुरू कर दी हैं। दरअसल, नवाज के लिए सबसे बड़ी चुनौती पाकिस्तानी फौज है, जिसने भारत में शुक्रवार को युद्ध विराम का उल्लंघन करके जता दिया कि भारत से किसी भी तरह की दोस्ती उनके लिए गलत साबित हो सकती है। दूसरी तरफ दहशतगर्दी से जूझने के लिए नवाज को जरूरत होगी उस पाक फौज की भी जिसने मुल्क के निर्माण के बाद से कई बार चुनी हुई हुकूमतों का तख्तापलट किया है। हालांकि मौजूदा सेनाध्यक्ष कियानी ने अब तक के रिवाजों से हटकर शपथ ग्रहण के पहले ही नवाज शरीफ के घर जाकर उनसे मुलाकात की। कयानी पहले भी जम्हूरियत को मजबूत करने की बात कर चुके हैं।

 पाक सेनाध्यक्ष परवेज कयानी पहले ही कह चुके हैं कि हर पाकिस्तानी की तरह पाकिस्तान की आर्मी भी जम्हूरियत को मजबूत करने में लगी है। जम्हूरियत की कामयाबी मुल्क की तरक्की से जुड़ी हुई है। क्या ये पाकिस्तान में जम्हूरी ताकतों और फौज के बीच आई रिश्तों में ठोस बदलाव का आगाज है या फिर अमेरिकी मिशन में लादेन की मौत और सेना के ठिकानों पर हमलों से शर्मसार हुई पाकिस्तानी फौज के अस्थायी रूप से बैकफुट पर आने का नतीजा। वैसे इस साल नवंबर में कयानी का कार्यकाल खत्म हो रहा है, लेकिन नया आर्मी चीफ कौन होगा और उसके नई सरकार से संबंध कैसे होंगे ये भी देखना अहम होगा। पाकिस्तान के 60 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब वहां की अवाम ने पूर्ण रूप से लोकतान्त्रिक तरीके से सरकार को चुना। इस बार के आम चुनाव में पाकिस्तानी आवाम ने समझदारी और बुद्धिमानी का परिचय देते हुए ऐसे नेता को चुना, जो पाकिस्तान के इतिहास में सबसे ज्यादा अनुभवी है। जिसने पाकिस्तान में सबसे ज्यादा शासन किया है। दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी फौज और चौथे सबसे बड़े परमाणु भंडार वाले पाकिस्तान को परमाणु सम्पन्न करने वाले भी नवाज शरीफ हैं। बदलाव और नकली बयानबाजी करने वाले नेताओ को अवाम ने नवाज से कमतर आंका। मतदान केंद्रों में अपने वोट की ताकत को समझने वालों की कतारों में महिलाओं और युवाओं को बढ़-चढ़कर शामिल होते देखा गया। ये जोश तब दिखा जब तालिबान ने वोटिंग के खिलाफ फरमान जारी कर रखा था और वोटिंग के दिन कई शहरों में सिलसिलेवार धमाके किए। पाकिस्तान इंस्टीट्यूट आॅफ पीस के मुताबिक चंद महीनों के चुनावी प्रचार के दौरान कुल 295 लोग मारे गए और करीब 900 जख्मी हुए। फिर भी 11 मई को करीब 60 फीसदी मतदान दर्ज हुआ।

अस्थिरता की दौर से गुजर रहे पाकिस्तान को इस वक़्त एक ऐसे अनुभवी नेता की जरूरत थी, जो घरेलु और अंतरराष्ट्रीय मोर्चे का सामना कर सके। पाकिस्तान में सबसे ज्यादा शासन करने वाले शरीफ को पता है कि अगर देश में तरक्की लानी है, तो आतंकवाद पर अंकुश और पड़ोसी मुल्कों से सम्बन्ध सुधरने होंगे। इसीलिए उन्होंने आम चुनाव में बहुमत पाकर सबसे पहले यह एलान किया कि पाकिस्तान को अपने पड़ोसी मुल्क भारत से संबंध हर हाल में बेहतर करने होंगे। इतना ही नहीं, उन्होंने अतिउत्साहित होकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपने शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने का न्योता भी दे डाला, लेकिन चीन को यह बात नागवार गुजरी, जिसके दबाव में आकार की नवाज की तरफ से इस मामले में दोबारा कोई क्रिया नहीं हुई। नवाज भारत के साथ-साथ चीन और अफगानिस्तान से भी बैर लेने के मूड में नहीं दिख रहे हैं। भारत से बातचीत के दौर में नवाज का अच्छा रिकॉर्ड रहा है और हो सकता है कि शांति प्रक्रिया को पटरी पर लाने के लिए नवाज जल्द ही भारत से शिखर सम्मलेन की पेशकश कर सकते हैं।

नवाज का अनुभव, कौशल और साख ही भारत-अफगानिस्तान से संबंध सुधारने में सबसे बड़ी ताकत सिद्ध हो सकते हैं। भारत की दूसरी बड़ी पार्टी भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी पाकिस्तान में हाल में हुए चुनावों में नवाज शरीफ की जीत का स्वागत करते है और कहते हैं कि पाकिस्तान में लोकतंत्र का मजबूत होना दक्षिण एशियाई क्षेत्र में शांति की गारंटी है।