सहज सरल तुम्हरी छवि
जिस पर भटकत जाऊं
मोहन तुम बंसी धरो
मैं व्याकुल हुई जाऊं
ब्रज मे घूमत फिरै हो
बैठी मैं यमुना के तीर
सब गोपियन के प्रेमी तुम
समझ न आवै हमरी पीर
हमरे ह्रदय की पीड़ा का
तुमका सुध कब आवे है
कह दूंगी मैया से जाके
कान्हा बड़ा सतावे है
इस कोमल काया पर
तुम कब दृष्टि डालोगे
आस है अपने मन मंदिर में
प्रेम का दीप जला लोगे...
जिस पर भटकत जाऊं
मोहन तुम बंसी धरो
मैं व्याकुल हुई जाऊं
ब्रज मे घूमत फिरै हो
बैठी मैं यमुना के तीर
सब गोपियन के प्रेमी तुम
समझ न आवै हमरी पीर
हमरे ह्रदय की पीड़ा का
तुमका सुध कब आवे है
कह दूंगी मैया से जाके
कान्हा बड़ा सतावे है
इस कोमल काया पर
तुम कब दृष्टि डालोगे
आस है अपने मन मंदिर में
प्रेम का दीप जला लोगे...