रिश्ते...ख़ामख़ा के रिश्ते
बेवजह के रिश्ते
क्यों ढोते हो ज़बरदस्ती इन्हें
बोझ कम क्यों नहीं कर देते ज़िंदगी का
कुछ काम के रिश्ते, कुछ बेकार के रिश्ते
कबाड़ की तरह पड़े हैं, न फेंके जाएं, न देखे जाएं
कुछ ऐसे जिनकी चमक भी फीकी पड़ गई
कुछ ऐसे जिन्हें चाहकर भी चमका नहीं सकते
कुछ ऐसे जो चमकना नहीं चाहते
कुछ ऐसे जो संभलना नहीं चाहते
चलो किसी दिन डूबते हुए सूरज की तरफ़
सुना है अंधेरा घना होता है उस तरफ़
समेटकर इन रिश्तों को डाल आए उस तरफ़
जहां से वापस न आ सकें ये इस तरफ़
रिश्ते न होंगे तो क्या होगा
सिर्फ मैं और मेरी तन्हाइयां होंगी
ज़िंदगी तो होगी, गम और खुशियां न होंगीं
हंस रहा होगा वक्त उन रिश्तों पर
जो बेवजह मुर्दा से पड़े थे दहलीज़ पर
जला दो भरी आंख के तट पर इन्हें
ये वो रिश्ते थे जिनमें अहसास नहीं थे
दफ़ना दो कलेजे पर पत्थर रखकर
इन पत्थर दिल रिश्तों को
यकीन मानों ज़िंदा वही मिलेंगे
जिनमें तुम्हारे लिए सांसें होगी
वरना घूमते रहो लेकर 'अरमान'
ख़ामख़ा के रिश्ते...बेवजह के रिश्ते...
#अरमान