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Friday 15 March 2013

मजबूत इरादों की जरूरत


पाकिस्तानी सेना के जवानों ने भारतीय जवानों के सिर काट लिए, श्रीलंका ने भारतीय मछुआरों को कैद कर लिया, चीन का भारत पर साइबर अटैक और सैंकड़ों मील जमीन पर कब्जा करना, नेपाल के रास्ते भारत में हो रहा आतंकियों का प्रवेश, सीमा जमीन समझौते के तहत बांग्लादेश का 600 एकड़ भारतीय जमीन हथियाना, मछुआरों की हत्या के गुनाहगार इटली के मरीन्स का अपने देश में जाकर बैठ जाना और फिर इटली के राजदूत का माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश को न मानना, दर्शाता है कि विश्व पटल पर हमारे देश की क्या छवि बन रही है। पहले तो हमारे पड़ोसी देश ही गीदड़ भभकी देते थे, लेकिन अब इटली भी भारत को एक कमजोर देश की नजर से देख रहा है। सवाल यहां यह नहीं उठता है कि भारत का प्रधानमंत्री या राजनीति कैसी है, सवाल ये है कि हम समय के साथ क्यों नहीं चल रहे हैं।

हमारे अंतरराष्ट्रीय संबंध कैसे हैं? क्या तेजी से बनते महाशक्ति भारत को सोची समझी साजिश के तहत विश्व समुदाय कमजोर करना चाहता है। यहां तक कि अफजल की फांसी पर कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक पाकिस्तान में धरने पर बैठ जाते हैं और हमारे हुक्मरानों की इतनी हिम्मत नहीं होती कि उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सके। भारत के अपने पड़ोसी देश नेपाल से बेहतर संबंध माने जाते हैं, लेकिन माओवादी सरकार आते ही चीन के इशारे पर भारत विरोधी लहर मुखर होने लगती है। बिना पासपोर्ट के कोई भी पाकिस्तानी आतंकवादी भारत में आराम से दाखिल हो सकता है। आखिर नेपाल से आने-जाने पर हम बंदिश क्यों नहीं लगा सकते हैं।

आज भारत को उन छोटे-छोटे देशों से सबक लेना चाहिए जो तमाम प्रतिबंधों को झेलते हुए अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। जिस प्रकार से वर्तमान में दुनिया चल रही है, भारत को उसी प्रकार से चलना होगा। ईरान व उत्तरी कोरिया जैसे छोटे-छोटे देश अमेरिका की दादागीरी का जवाब उसी की भाषा में दे रहे हैं। इराक को तहस-नहस करने वाला अमेरिका भले ही ईरान व उत्तरी कोरिया पर हमले के लिए विश्व समुदाय को अपनी तरफ खींचने का प्रयास कर रहा हो, पर किसी भी तरह का हमला करने के लिए उसकी हिम्मत नहीं पड़ रही है। वजह ये है कि खुलेआम ईरान और उत्तरी कोरिया की सरकारें अमेरिका को ललकारने में पीछे नहीं हटती हैं। भारत को भी इन छोटे देशों से सबक लेते हुए अपने पड़ोसी देशों को सबक सिखाना चाहिए। भारत को डिफेंसिव नहीं, बल्कि अटैकिंग बनना पड़ेगा। हमें पहले उनके सैनिकों के सिर काटने पड़ेंगे, हमें उनकी जमीन पर पहले कब्जा करना होगा, दक्षिण एशिया में हमारी दबंगई चलनी चाहिए, क्योंकि भारत इन देशों में सबसे बड़ा और शक्तिशाली है।

 अरबों रुपये क्यों खर्च होते हैं देश की सुरक्षा पर, क्यों विदेशी हथियार और हेलीकॉप्टर खरीदे जाते हैं? इनका पूरी तरह से इस्तेमाल होना चाहिए। इन्हें शो पीस बनाकर देश में न रखा जाए। आज उन देशों की ओर किसी भी देश की आंख उठाने की हिम्मत नहीं होती, जो दबंगई के बल पर अपनी सशक्त छवि दुनिया में बनाए हुए हैं। 1971 के युद्ध में भारत कहीं ज्यादा गरीब और कमजोर था, लेकिन मजबूत इरादों की धनी इंदिरा गांधी ने अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन को पाकिस्तान के समर्थन के खिलाफ खुली चुनौती दे डाली थी ौर अमेरिका हाथ मलता रह गया था।