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Wednesday 10 June 2015

जैसे तू आज भी आसपास रहता है

तन्हा-तन्हा सा हर लम्हा
बेकरार रहता है
इन आंखों को तेरा इंतज़ार रहता है
संवारता हूं हर इक चीज़ को
कुछ इस तरह
जैसे तू आज भी आसपास रहता है

दूर होकर भी हर पल में तू है शामिल 
तेरे तसव्वुर से मेरी जिंदगी है कामिल
हवा का झोखा तेरी खुशबू लेकर गुज़रता है 
इन आंखों को तेरा इंतज़ार रहता है

कुछ बातें हैं सुननी, कुछ बातें हैं सुनानी
जो छोड़कर गए वो बातें हुईं पुरानी
सुना है तू अब नए अफ़साने कहता है
इन आंखों को तेरा इंतज़ार रहता है

हो सके तो मेरी इक बात मानो
ग़में जुदाई का दर्द तुम भी जानो
तेरी आमद का ‘अरमान’ दिल में रहता है
इन आंखों को तेरा इंतज़ार रहता है









Tuesday 9 June 2015

बुरे होने का सबूत मिल गया

बुरे होने का सबूत मिल गया
मैं अपनी पहचान पाकर हिल गया
वक्त भी गवाही दे रहा है
साथ रहते मालूम ही नहीं पड़ा
कितने गुनाह कर रहा था
जिसका हिसाब किताब 
लगातार तुम जोड़ रहे थे
एक कारोबारी बनिये की तरह
पाई-पाई की तोहमत को जोड़ रखा था
जैसे मालूम हो कि एक दिन यही काम आएंगे
मेरे किरदार को दागदार बनाने के लिए
क्या एक भी मुझमें अच्छाई नहीं मिली
या फिर छलनी से छान लिए मेरे हर इक ऐब
कच्चा हूं थोड़ा जज्बातों के हिसाब किताब में
थोड़ा सा दिल क्या दुखा, लगा चीखने चिल्लाने
शैतान को खड़ा कर देता हूं बाहर लाके
काश तुम भी वक्त के साथ अपने शैतान को बाहर कर देते
जो सालों से बैठा रहा तुम्हारे अंदर
मेरे हर मर चुके शैतान को ज़िंदा करने के लिए....

Wednesday 3 June 2015

अब निकलना है हमें दूर कहीं

अब निकलना है हमें दूर कहीं
फ़ासलों का वक्त आ गया
समेट लो अपना-अपना सामान
कहीं रह न जाए कोई चीज़
जो सबब बन जाए पछताने का

मैंने तो अपना ग़म उठा लिया
ये लो अपने चेहरे की खुशी
बड़ी क़ीमती है तुम्हारे लिए
हमेशा इसे साथ रखना
ख़ूबसूरत जो लगती हो इसके साथ

चलो अपना-अपना मज़हब अलग करो
कितने दिन से एक साथ पड़े-पड़े उलझ गए हैं
समझ नहीं आता अब सुलझेंगे कैसे
न जाने किसका कौन सा मज़हब है
पर अपना-अपना ही ध्यान से लेना
यही तो है जो दिलाएगा सच्चा साथी
ऐसा ही ज़माने के लोग कहते हैं

ये मोहब्बत तो बड़ी भारी है
इसको कैसे लो जाओगे
ख़ैर इसे यहीं रहने दो
शायद अब ये तुम्हारे काम की नहीं
बेवजह का बोझ लादे घूमोगे

ओफ्फो कितनी धूल जम गई है ख़्यालातों में
पुराने जो हो गए हैं
इन कमबख़्तों को यहीं छोड़ दो
खामखां परेशान करेंगे तुम्हें

लो यादों को छांट लो
जो तुम्हें अच्छी लगें रख लो
बाक़ी यहीं पड़ी रहने दो
ये कहीं ले जाने के लायक़ नहीं

अरे इन अरमानों का क्या करना है
इनकों तो बांटा भी नहीं जा सकता
बिना एक-दूसरे के ये मुकम्मल भी तो नहीं हो सकते

चलो अब बहुत सामान हो गया
कुछ रह तो नहीं गया, ठीक से देख लो
हां, रह तो गया है
तुमसे बिछड़ना
लो वो भी हो गया
‘अरमान’ अब कहीं खो गया...