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Saturday 17 June 2017

आओ ज़रा मिलकर ख़ुशियां ढूंढते हैं

आओ ज़रा मिलकर ख़ुशियां ढूंढते हैं
तुम इधर देखो, मैं उधर देखता हूं
यहीं कहीं आसपास होंगीं
बस नज़र ही तो नहीं आतीं
बिखरी-बिखरी सी मिलती हैं ये
एकमुश्त कभी नहीं दिखतीं
कितनी भी मिलें उठा लेना
दोनों की मिलाकर बड़ी कर लेंगे
ज़रा एहतिहात से थामना 
हाथ से फिसलते देर नहीं लगती
जितनी जल्दी हो सके
मल लेना तन-बदन में
वक़्त के साथ इनका बड़ा याराना है
वक़्त आएगा और इन्हें ले जाएगा
गर न मिले तो बिल्कुल मत घबराना
एक-दूसरे को ही अपनी ख़ुशी बनाना

तन्हाइयों ने कुछ इस क़दर जगह बना ली है

तन्हाइयों ने कुछ इस क़दर जगह बना ली है
आइने में अक्स देखूं तो आइना भी ख़ाली है

गिला किससे करें किससे करें शिकवा
मोहब्बत ने ये अजीब सी आदत डाली है

शिकार करती हैं मुझे दिन रात तेरी यादें
बड़े नाज़ों से मैंने जी जान से जो पाली हैं

वजूद अपना तो पहले ही खो चुके थे हम
फिर किस बात की ये दुश्मनी निकाली है

अंधेरा घना है, आओगे लौट के इक दिन
बस इस उम्मीद से रौशनी जला ली है

देखकर हैरान न हो जाना हमारी महफ़िल को
चांद-तारों से सजी क़ायनात बुला ली है

कोई बेवजह की चीज़ नहीं मेरे 'अरमान'
बड़ी हसरतों से तेरी चाहतें संभाली हैं....

Friday 9 June 2017

तेरा चेहरा है या कोई मर्ज़ की शिफ़ा

तेरा चेहरा है या कोई शिफ़ा

देखते ही रंगत बदल जाती है

तेरा चेहरा है या कोई मर्ज़ की शिफ़ा

देखते ही मिज़ाज की रंगत बदल जाती है

झील सी आंखे हैं या कोई समंदर

डूबने को तबियत मचल जाती है

सुकुन मिलता है तुझे देखकर कुछ ऐसे

जैसे तपते रेत पे सर्द हवा चल जाती है

न कोई चर्चा तेरा न कोई ज़िक्र तेरा

न जाने क्यों तेरी फिर बात निकल आती है

सोचता हूं छुपा लूं इस ज़माने से तुझे

ये दुनिया है, बात-बात पे बदल जाती है

भले मिले न मिले एक पल का साथ तेरा

इन ख़्यालों से सुबह-शाम ढल जाती है

ज़मीं पे रहता है एक चांद और भी

अक्सर सितारों में भी बात चल जाती है

किसी हूर के नूर की क्या बात करें

तेरी आब देखके शमा भी जल जाती है

अरमान है बरकार रहे तेरे चेहरे की रौनक

हर दुआ,  इसी दुआ में बदल जाती है...