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Tuesday 12 June 2018

तुम्हारे चले जाने के बाद

तुम्हारे चले जाने के बाद
मैं भी कहीं चला गया
ढूंढता रहता है कोई
जो खो गए उनको
ख़ाली ख़ाली से बदन
बस रह गए इंतज़ार में
जो कभी खूबसूरत थे
आंखें ढूंढने निकलती हैं
और लौट आती हैं ख़ाली हाथ
तुम्हारे आने का पता नहीं
मैं कब लौटूंगा ख़बर नहीं
लेकिन निरंतर चलती रहेंगी सांसें
तुम्हारी मोहब्बत के रास्ते पर
और पता नहीं ये चलते चलते
कहां निकल जाएं
और फिर लौट कर वापस न आ सकें
तुम्हारी तरह..

Sunday 3 June 2018

चलो आज लगाएं यादों का बाज़ार

चलो आज लगाएं यादों का बाज़ार
कोई तो मिल ही जाएगा ख़रीदार

पुरानी हैं तो दाम भी कम है
सलामत हैं यही क्या कम है

एक-एक के अब दाम कौन लगाए
कोई थोक में लेता हो तो बोली लगाए

बाज़ार ए इश्क़ में बड़ी चालबाज़ी है
छूके देखिए जनाब ये आज भी ताज़ी है

ले लो सस्ती हैं, नहीं क़ीमत ज़्यादा है
ताउम्र साथ रहेंगीं 'अरमान' का वादा है...
#अरमान

इंसानियत का हो गया क़त्ल

इंसानियत का हो गया क़त्ल
कोई समझ न पाया
हर दफ़ा की तरह इल्ज़ाम 
हिंदू-मुसलमां पर आया
तमाशा और चलेगा
अपनी जगह पर बैठो 'अरमान'
अभी तो सय्याद ने अपना
महज़ है जाल बिछाया...
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*सय्याद-आखेटक, बहेलिया
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लाख भीड़ है ज़माने की पर बंद सबकुछ दर सा है

लाख भीड़ है ज़माने की
पर बंद सबकुछ दर सा है

कोई नज़र नहीं आता अब
ख़ाली-ख़ाली ये शहर सा है

ठहर जाऊं दो घड़ी कहां
नहीं लगता कोई घर सा है

रस्ते जा रहे किस तरफ़ कौन जाने
हर दिल में बसा इक डर सा है

सहमा-सहमा खड़ा मुसाफ़िर यहां
मन में रहबर के कहर सा है

सांसें तो चल रहीं पर मत पूछो
हवाओं में अजब ज़हर सा है

झूठ फैलाते हैं वो बड़े सलीके से
जो बिकता बड़ी ख़बर सा है

रात लंबी सही, ख़त्म होगी 'अरमान'
उम्मीदों में कुछ सहर सा है...
#अरमान
सहर-सुबह

मरकर पैसा कौन साथ ले जा रहे हैं

मरकर पैसा कौन साथ ले जा रहे हैं
यहां अंधे पीस रहे और कुत्ते खा रहे हैं

जो ले गए अरबों उन्हें न पुकारा जाएगा
तू ठहरा ग़रीब मरकर कर्ज़ चुकाएगा

भइया वो जो डकार गए ज़्यादा नहीं थोड़े हैं
शौक़ से खाइए आपकी क़िस्मत में पकौड़े हैं

अब क्यों चीख़ता और चिल्लाता है
कहते हैं जो बोता है वही पाता है

जब RBI ग़ुलाम है तो बैंक क्या करें
समय से ITR और Aadhar जमा करें...
#अरमान

धूल हूं तो क्या हुआ ज़मीं की हूं बोझ नहीं

धूल हूं तो क्या हुआ
ज़मीं की हूं बोझ नहीं

उड़ती हूं हवाओं संग
ज़र्रे-ज़र्रे में मेरा रंग
ख़त्म होती नहीं
वजूद खोती नहीं
आसमां से भी गिरकर
हंसती हूं, रोती नहीं
हां, धूल हूं तो क्या हुआ
ज़मीं की हूं बोझ नहीं

रहती हूं लिपटकर
जबतक जो साथ चाहे
कोई ग़म भी नहीं
गर मुझे हटा दे
हां, धूल हूं तो क्या हुआ
ज़मीं की हूं बोझ नहीं

तुम क्या जानो मुझे 'अरमान'
मैं ख़ूद को ख़ूब समझती हूं
जूतों से मारते हो ठोकर
माथे पर चंदन सी चमकती हूं
हां, धूल हूं तो क्या हुआ
ज़मीं की हूं बोझ नहीं
#अरमान

तुम्हें महसूस करूं या छु लूं

तुम्हें महसूस करूं
या छु लूं
या समा लूं ख़ुद में
या क़ैद कर लूं
नज़रों में
या जल जाऊं
तेरी तपिश में
या पिघल जाऊं
मोम सा सांसों में
या बह जाऊं
मदहोश होकर
बाहों में
या खो जाऊं
इन आंखों में
या सुलगता रहूं
बस यूं हीं
मिलन की आग में...
#अरमान

रिश्ते बनते हैं धीरे-धीरे

रिश्ते बनते हैं धीरे-धीरे
नाते बिगड़ते हैं धीरे-धीरे

रस्ते बदलते हैं धीरे-धीरे
लोग बिछड़ते हैं धीरे-धीरे

बात उड़ती है धीरे-धीरे
लोग सुनते हैं धीरे-धीरे

हवा चलती है धीरे-धीरे
पत्ते गिरते हैं धीरे-धीरे

रात जलती है धीरे-धीरे
शमा पिघलती है धीरे-धीरे

ख़्वाब आते हैं धीरे-धीरे
टूट जाते हैं धीरे-धीरे

'अरमान' जगते हैं धीरे-धीरे
ज़िंदगी बुनते हैं धीरे-धीरे

वक़्त गुज़रता है धीरे-धीरे
आदमी मरता है धीरे-धीरे...
#अरमान

दुआ क्या होती है मैं नहीं जानता

दुआ क्या होती है
मैं नहीं जानता
आपको देखा
तो ख़ुदा से मांग लिया

जन्नत क्या होती है
कभी नहीं देखी
तुम ज़िदगी में आए
तो उसे भी जान लिया

ज़िंदगी क्या होती है
मैं नहीं जानता
तुम्हें जो महसूस किया
तो मौत को भी मान लिया

मोहब्बत क्या होती है
मैंने नहीं समझा
तुमने छुआ जो ऐसे
'अरमां' का ईमान लिया....
#अरमान

जो दिन सी जागती थ

जो दिन सी जागती थी
वो रात सी सोयी

जो हवा सी चलती थी
वो बरसात सी रोयी

जो पाना था उसको
वो चीज़ उसने खोयी

ज़िंदगी किसी ने उसकी
क्यों है अश्क़ में डुबोई...

#अरमान

ये है छत वाला प्यार....

चार आंखें
दो छतें
दो नज़रें
एक मोहब्बत,
उन पर लगीं
हज़ार नज़रें

दो आंखें
गुम हुईं,
दो नज़रें
करती रहीं
इंतज़ार

दो नज़रें भी
गुम हुईं,
अब कोई नज़र
नज़र नहीं आती

बची दो छतें
दोनों ख़ाली,
करती हैं
किसी नज़र का
इंतज़ार.....

और हज़ार नज़रें
अब ख़ाली छतों
को देखती हैं...
#अरमान

बड़ी-बड़ी अंखियों में

बड़ी-बड़ी अंखियों में
रात का काजल लगा दूं

खिले-खिले चेहरे पे
दिन का सूरज जगा दूं

गोरी-गोरी बाहों में
चांद का कंगन पवा दूं

काली-काली ज़ुल्फ़ों को
सुरमई घटा से सजा दूं

झुकी-झुकी नज़रों को
शर्म ओ हया से उठा दूं

हौले-हौले आंचल को
शोख़ हवा से उड़ा दूं

धीरे-धीरे चुपके से
राज़ की बात बता दूं

खोए-खोए इस दिल के
'अरमान' आज जता दूं...
#अरमान

ऐ दुनिया तुझे किस बात का नशा तारी है

ऐ दुनिया तुझे किस बात का नशा तारी है
मेरी आंख के आंसू मेरे जिस्म से भारी हैं

ख़ुशनसीब हो जो मिल गया सबकुछ तुम्हें
न जाने किसने बख़्शी पैदाइशी लाचारी है

ये महफ़िलें, ये दावतें, ये रौनकें  तुम्हारी
मेरे हिस्से में तो बस भूख और बीमारी है

मत कर घमंड इस क़दर ऐ 'अरमान'
आज मेरी तो कल तेरी भी बारी है...
#अरमान

इक शहर है अंजाना सा

इक शहर है अंजाना सा
मेरे मन में बसता है
इक चेहरा है चंदा सा
परदे में हंसता है

इक बात है अनकही सी
हर तरफ़ गूंजती है
इक नज़र है पगली सी
किसी खोए को ढूंढती है

इक रात है काली सी
जो ख़त्म नहीं होती
एक झील है गहरी सी
दिन रात है डुबोती

इक गली है धुंधली सी
जो सूनी सी है रहती
इंतज़ार में किसी के
खोई सी है रहती

इक ख़ामोशी है लंबी सी
न सुनता न कोई कहता है
अंजान इस शहर में
इक शख़्स अकेला रहता है..
#अरमान

न जाने क्या दिन-रात सोचता है

न जाने क्या दिन-रात सोचता है
मुझको ये शहर पल-पल नोचता है
दौड़ता फिरता है किसकी तलाश में
जागता रहता है क्यों नहीं सोता है

ज़िंदगी जीने के लिए गांव छोड़ आए
मां-बाप के दुआओं भरे हाथ छोड़ आए
ख़्वाब लेकर आ गए पर नींद छोड़ आए
ख़ुद को पाने के लिए क्या-क्या खोता है
जागता रहता है क्यों नहीं सोता है

न दिखते चौखट पे कोई रंग न रंगोली
न आती नज़र मोहल्ले की हंसी ठिठोली
न दिखती खेतों की वो सूरत भोली
आंख में रह-रह कर नश्तर चुभोता है
जागता रहता है क्यों नहीं सोता है

छत तो मिल गई पर घर कहां है
बुज़ुर्गों की गाली का डर कहां है
मिल जाए जितना उसमें सबर कहां हैं
हो ज़रूरत तो कोई पास कहां होता है
जागता रहता है क्यों नहीं सोता है...

#अरमान

तेरा सफ़र, मेरा सफ़र

तेरा सफ़र, मेरा सफ़र

चलते रहें यूं बेख़बर

किस बात का हमको हो डर

कैसी भी हो अपनी डगर

मेरे हाथ में तेरा हाथ हो

मंज़िल तलक ये साथ हो

कदमों के हों इक ही निशां

जैसे ज़मी और आसमां

बातों में भी तेरा ज़िक्र हो

किस बात की फिर फिक्र हो

थामो मुझे गिर जाऊं जो

खो जाऊं मैं न पाऊं तो

बस इक यही अरमान हो

हम दो बदन इक जान हों...