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Saturday, 17 June 2017

तन्हाइयों ने कुछ इस क़दर जगह बना ली है

तन्हाइयों ने कुछ इस क़दर जगह बना ली है
आइने में अक्स देखूं तो आइना भी ख़ाली है

गिला किससे करें किससे करें शिकवा
मोहब्बत ने ये अजीब सी आदत डाली है

शिकार करती हैं मुझे दिन रात तेरी यादें
बड़े नाज़ों से मैंने जी जान से जो पाली हैं

वजूद अपना तो पहले ही खो चुके थे हम
फिर किस बात की ये दुश्मनी निकाली है

अंधेरा घना है, आओगे लौट के इक दिन
बस इस उम्मीद से रौशनी जला ली है

देखकर हैरान न हो जाना हमारी महफ़िल को
चांद-तारों से सजी क़ायनात बुला ली है

कोई बेवजह की चीज़ नहीं मेरे 'अरमान'
बड़ी हसरतों से तेरी चाहतें संभाली हैं....

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