किसको कहें अपना, कौन है
सहारा,
ख़ुदग़र्ज़ी में डूबा है ये
जहान सारा,
दिल को लग जाए अच्छी वो बात
नहीं होती,
मेरे ग़म की तेरे चश्म से
बरसात नहीं होती,
इस हाल को न समझे, इस हाल
को न जाने,
तन्हा ही जी रहे हैं ग़ुजरे
हुए ज़माने,
लफ़्ज़ों की है ज़बानी,
लफ़्ज़ों से है सुनानी,
कुछ दिन की बात है ये फिर
ख़त्म है कहानी,
मेरी बेइंतहा मोहब्बत मेरी
ख़ूबियों पे भारी,
मेरे अख़लाक़ की तस्वीर
क्या ख़ूब है उतारी,
क्यों इस क़दर ग़मों से भर
जाता हूं,
तुम्हें कोई और देखे तो डर जाता
हूं,
काश तुमने भी ज़रा मोहब्बत
दिखाई होती,
कभी प्यार से ये बात समझाई
होती,
मेरे दिमाग़ के फ़ितूर नहीं
मर सकते,
वो कहते है के ‘अरमान’ नहीं सुधर सकते,
तुम्हारी सोच से ज़्यादा
बद्तर नहीं हूं,
तुम बदल गए हो मैं आज भी
वहीं हूं....
वाह ... दिल को छूते हुए शेर ...
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