गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है। लेकिन बेचारा झम्मनलाल गाड़ी की सीटी सुनकर परेशान हो जाता है। सीटी की आवाज सुनकर किसी सस्पेंस फिल्म की तरह सोच में पड़ जाता है कि क्या वो अपने दोस्त की शादी में इंदौर पहुंच पाएगा। दरअसल, तीन महीने बाद इंदौर में उसके दोस्त की शादी है। पिछले हफ्ते झम्मन ने अखबार में खबर पढ़ी कि रेलवे ने किराया बढ़ाने का मन बना लिया है। रेलवे का तर्क है कि यात्रियों की सुरक्षा और बढ़ती रेल दुर्घटनाओं को देखते हुए यह कदम उठाना जरूरी हो गया है। अब घर के सामान की खरीददारी में अठन्नी-चवन्नी बचाने वाले झम्मन के ऊपर किराए का अतिरिक्त बोझ बढ़ जाने से गंतव्य तक पहुंचने में संकट खड़ा हो रहा है। झम्मन का तर्क है कि जिस मंत्रालय के मंत्री ने आईआईएम जैसे अति विशिष्ट संस्थान के छात्रों को मैनेजमेंट का पाठ पढ़ाया, उसका ही विभाग अपना मैनेजमेंट खुद क्यों नहीं बना पाया। आखिर उन्होंने अपने कार्यकाल में ऐसा क्या किया कि दूसरा मंत्री आते ही अचानक रेलवे ब्लेड लेकर यात्रियों की जेब काटने पर उतारू हो गया। अगर इनका बस चलता, तो पटना से दिल्ली, मुंबई, चेन्नई तक के लिए लोकल ट्रेन की व्यवस्था कर देते। रेल मंत्रालय को ये बात सुनिश्चित करनी चाहिए कि ट्रेन समय से स्टेशनों में पहुंचेंगी। क्योंकि रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या करने वाला मरने के इंतजार में भूख से मर जाएगा, पर गाड़ी टाइम से नहीं आएगी। रेल मंत्रालय को ये भी सुनिश्चित करना चाहिए कि यात्रियों की सुविधाओं की कमी नहीं होगी, खाना अच्छी क्वालिटी का होगा, स्टेशनों में उचित दामों में सामान मिलेगा, वहां साफ-सफाई होगी, जेब कतरे जेल में आराम करेंगे और यात्रियों को बैठने के लिए सीट मिलेगी। क्योंकि लोगों की भीड़ को देखते हुए कुछ ट्रेनों का नाम गाय-भैंस एक्सप्रेस होना चाहिए। अगर यूपी की मुख्यमंत्री रेल मंत्री होतीं, तो गाड़ियों के नाम क्या होते इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। हो सकता है गरीब रथ एक्सप्रेस, हाथी रथ एक्सप्रेस बन जाती। लेकिन झम्मन को अभी तक एक बात समझ में नहीं आ रही है कि रेलवे अभी तक जो किराया यात्रियों से वसूलता था, वो किस बात का था। उसमें क्या ये सब सुविधाएं देने का वादा नहीं था। अब झम्मन को डर लग रहा है कि अगर किसी भी संगठन ने रेलवे द्वारा बढ़ाए जा रहे किराए का विरोध किया और किराया नहीं बढ़ा तो उसके जानमाल के खतरे की जिम्मेदारी कौन लेगा। फिर तो यात्रियों की सुरक्षा राम भरोसे हो जाएगी। अगर भविष्य में कभी रेल दुर्घटना होती है, तो रेल मंत्रालय ये कहकर अपना पल्ला झाड़कर एक तरफ खड़ा होकर कहेगा कि हमने तो पहले ही कहा था कि अपनी सुरक्षा के लिए अलग से दक्षिणा चढ़ानी होगी। आप जितने पैसे से टिकट खरीदते हैं, वो तो मंत्रियों की ही जेबें नहीं भर पाता है, यात्रियों की सुरक्षा कहां से हो। जो लोग किराया बढ़ाने की दलील दे रहे हैं, उनके लिए तो सरकार फ्री में एसी के टिकट मुहैया कराती है। लेकिन रेल में सबसे ज्यादा सफर झम्मनलाल जैसे लोग करते हैं, जिन्हें अपनी हिफाजत के लिए सरकार को अतिरिक्त धन देना होगा। वाह रे झम्मनलाल ...आसिफ इकबाल
Monday, 20 February 2012
गाड़ी डरा रही है
गाड़ी बुला रही है, सीटी बजा रही है। लेकिन बेचारा झम्मनलाल गाड़ी की सीटी सुनकर परेशान हो जाता है। सीटी की आवाज सुनकर किसी सस्पेंस फिल्म की तरह सोच में पड़ जाता है कि क्या वो अपने दोस्त की शादी में इंदौर पहुंच पाएगा। दरअसल, तीन महीने बाद इंदौर में उसके दोस्त की शादी है। पिछले हफ्ते झम्मन ने अखबार में खबर पढ़ी कि रेलवे ने किराया बढ़ाने का मन बना लिया है। रेलवे का तर्क है कि यात्रियों की सुरक्षा और बढ़ती रेल दुर्घटनाओं को देखते हुए यह कदम उठाना जरूरी हो गया है। अब घर के सामान की खरीददारी में अठन्नी-चवन्नी बचाने वाले झम्मन के ऊपर किराए का अतिरिक्त बोझ बढ़ जाने से गंतव्य तक पहुंचने में संकट खड़ा हो रहा है। झम्मन का तर्क है कि जिस मंत्रालय के मंत्री ने आईआईएम जैसे अति विशिष्ट संस्थान के छात्रों को मैनेजमेंट का पाठ पढ़ाया, उसका ही विभाग अपना मैनेजमेंट खुद क्यों नहीं बना पाया। आखिर उन्होंने अपने कार्यकाल में ऐसा क्या किया कि दूसरा मंत्री आते ही अचानक रेलवे ब्लेड लेकर यात्रियों की जेब काटने पर उतारू हो गया। अगर इनका बस चलता, तो पटना से दिल्ली, मुंबई, चेन्नई तक के लिए लोकल ट्रेन की व्यवस्था कर देते। रेल मंत्रालय को ये बात सुनिश्चित करनी चाहिए कि ट्रेन समय से स्टेशनों में पहुंचेंगी। क्योंकि रेलवे ट्रैक पर आत्महत्या करने वाला मरने के इंतजार में भूख से मर जाएगा, पर गाड़ी टाइम से नहीं आएगी। रेल मंत्रालय को ये भी सुनिश्चित करना चाहिए कि यात्रियों की सुविधाओं की कमी नहीं होगी, खाना अच्छी क्वालिटी का होगा, स्टेशनों में उचित दामों में सामान मिलेगा, वहां साफ-सफाई होगी, जेब कतरे जेल में आराम करेंगे और यात्रियों को बैठने के लिए सीट मिलेगी। क्योंकि लोगों की भीड़ को देखते हुए कुछ ट्रेनों का नाम गाय-भैंस एक्सप्रेस होना चाहिए। अगर यूपी की मुख्यमंत्री रेल मंत्री होतीं, तो गाड़ियों के नाम क्या होते इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। हो सकता है गरीब रथ एक्सप्रेस, हाथी रथ एक्सप्रेस बन जाती। लेकिन झम्मन को अभी तक एक बात समझ में नहीं आ रही है कि रेलवे अभी तक जो किराया यात्रियों से वसूलता था, वो किस बात का था। उसमें क्या ये सब सुविधाएं देने का वादा नहीं था। अब झम्मन को डर लग रहा है कि अगर किसी भी संगठन ने रेलवे द्वारा बढ़ाए जा रहे किराए का विरोध किया और किराया नहीं बढ़ा तो उसके जानमाल के खतरे की जिम्मेदारी कौन लेगा। फिर तो यात्रियों की सुरक्षा राम भरोसे हो जाएगी। अगर भविष्य में कभी रेल दुर्घटना होती है, तो रेल मंत्रालय ये कहकर अपना पल्ला झाड़कर एक तरफ खड़ा होकर कहेगा कि हमने तो पहले ही कहा था कि अपनी सुरक्षा के लिए अलग से दक्षिणा चढ़ानी होगी। आप जितने पैसे से टिकट खरीदते हैं, वो तो मंत्रियों की ही जेबें नहीं भर पाता है, यात्रियों की सुरक्षा कहां से हो। जो लोग किराया बढ़ाने की दलील दे रहे हैं, उनके लिए तो सरकार फ्री में एसी के टिकट मुहैया कराती है। लेकिन रेल में सबसे ज्यादा सफर झम्मनलाल जैसे लोग करते हैं, जिन्हें अपनी हिफाजत के लिए सरकार को अतिरिक्त धन देना होगा। वाह रे झम्मनलाल ...आसिफ इकबाल
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment