यादों से कह दो जरा आहट देकर आयें,
क्या इतनी सी भी तमीज नहीं के दरवाजा खटखटाएं,
इस दिल में परदानशीं हैं उनकी मोहब्बत
कहीं तेरी इस नादानी से वो रुसवा न हो जाये,
शिकवा, अफसोस, रंजो गम भी एक दिन आये थे ,
साथ में कमबख्त बदनामी को भी लाये थे.
खड़े रहे मेरे अरमानों के सामने सिर झुकाए,
मांग रहा हूँ उस रब से बस एक दुआ,
कहीं बेपर्दा उनकी मोहब्बत मेरे दिल से न हो जाये...अरमान आसिफ इकबाल
क्या इतनी सी भी तमीज नहीं के दरवाजा खटखटाएं,
इस दिल में परदानशीं हैं उनकी मोहब्बत
कहीं तेरी इस नादानी से वो रुसवा न हो जाये,
शिकवा, अफसोस, रंजो गम भी एक दिन आये थे ,
साथ में कमबख्त बदनामी को भी लाये थे.
खड़े रहे मेरे अरमानों के सामने सिर झुकाए,
मांग रहा हूँ उस रब से बस एक दुआ,
कहीं बेपर्दा उनकी मोहब्बत मेरे दिल से न हो जाये...अरमान आसिफ इकबाल
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