वक्त के दामन से लम्हें चुरा रहा हूं,
हालातों के दरिया में कश्ती बचा रहा हूं,
जिंदगी चीख रही है साहिल पे
उसे तूफानों के रुख से वाकिफ करा रहा हूं...
तरकीबें तमाम हैं जंगे जद्दोजहद की
फकत तलवार-ए-खामोशी को चला रहा हूं
कभी कोई ले गया है क्या साथ सल्तनत को
कब से इन्हें बादशाहों की कब्रें दिखा रहा हूं
गुरूर में शक्ल हो गई है बेरौनक 'अरमान'
अखलाक ओ मोहब्बत का आइना दिखा रहा हूं....अरमान आसिफ इकबाल
हालातों के दरिया में कश्ती बचा रहा हूं,
जिंदगी चीख रही है साहिल पे
उसे तूफानों के रुख से वाकिफ करा रहा हूं...
तरकीबें तमाम हैं जंगे जद्दोजहद की
फकत तलवार-ए-खामोशी को चला रहा हूं
कभी कोई ले गया है क्या साथ सल्तनत को
कब से इन्हें बादशाहों की कब्रें दिखा रहा हूं
गुरूर में शक्ल हो गई है बेरौनक 'अरमान'
अखलाक ओ मोहब्बत का आइना दिखा रहा हूं....अरमान आसिफ इकबाल
कभी कोई ले गया है क्या साथ सल्तनत को
ReplyDeleteकब से इन्हें बादशाहों की कब्रें दिखा रहा हूं
उम्दा
Lajawaab.....
ReplyDeleteआपका आभार अनुषा, परी जी,,,
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ReplyDeleteआज 28/जनवरी/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!
क्या बात है बहुत ख़ूब ......
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