अपने दिल से मुझे निकाला, तो क्या बात हुई
मेरे दिल से खुद को निकालों तो जानूं
इश्क-ए-जहां में मैं तेरे लिए अजनबी सही
इस जिगर के मकान का मालिक मैं तुझे मानूं
कुछ इस तरह से तूने इस पर कब्जा किया है
हर पल सांसों ने जिंदगी से सौदा किया है
फिर कैसे तुझे अपनी मौत का सौदागर मानूं
मेरे दिल से खुद को निकालों तो जानूं
मेरा बनकर मेरे दिल में रहता है
हर दर-ओ-दीवार से कुछ कहता है
खुलेआम इजहार-ए-मोहब्बत करे तो मानूं
मेरे दिल से खुद को निकालों तो जानूं
कभी अपनी तहजीब को धोखा दे
होके बेपर्दा तमन्नाओं को एक मौका दे
मेरी तरह अपने भी 'अरमान' सजा तो मानूं
मेरे दिल से खुद को निकालों तो जानूं
मेरे दिल से खुद को निकालों तो जानूं
इश्क-ए-जहां में मैं तेरे लिए अजनबी सही
इस जिगर के मकान का मालिक मैं तुझे मानूं
कुछ इस तरह से तूने इस पर कब्जा किया है
हर पल सांसों ने जिंदगी से सौदा किया है
फिर कैसे तुझे अपनी मौत का सौदागर मानूं
मेरे दिल से खुद को निकालों तो जानूं
मेरा बनकर मेरे दिल में रहता है
हर दर-ओ-दीवार से कुछ कहता है
खुलेआम इजहार-ए-मोहब्बत करे तो मानूं
मेरे दिल से खुद को निकालों तो जानूं
कभी अपनी तहजीब को धोखा दे
होके बेपर्दा तमन्नाओं को एक मौका दे
मेरी तरह अपने भी 'अरमान' सजा तो मानूं
मेरे दिल से खुद को निकालों तो जानूं
बहुत खूब अरमान साहब !
ReplyDeleteधन्यवाद यश जी,,,
Deleteअपने दिल से मुझे निकाला, तो क्या बात हुई
ReplyDeleteमेरे दिल से खुद को निकालों तो जानूं
वाह .... बेहतरीन
सादर आभार अनुषा,,,
Deleteप्रेम के कुछ अनछुए पहलुओं को लेकर बुनी ग़ज़ल ... बहुत ही लाजवाब ...
ReplyDeleteRecent Post …..विषम परिस्थितियों में छाप छोड़ता लेखन -- कविता रावत :)
thank you bhaskar ji...
Deleteप्रभावशाली अभिव्यक्ति अरमान जी ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteसादर आभार साधना जी
Deleteबहुत खूब ... हमारे दिल में कोई दूसरा कैसे कुछ कर सकता है ...
ReplyDeleteअच्छा ख्याल ...
सादर आभार दिगंबर जी,,
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