सहज सरल तुम्हरी छवि
जिस पर भटकत जाऊं
मोहन तुम बंसी धरो
मैं व्याकुल हुई जाऊं
ब्रज मे घूमत फिरै हो
बैठी मैं यमुना के तीर
सब गोपियन के प्रेमी तुम
समझ न आवै हमरी पीर
हमरे ह्रदय की पीड़ा का
तुमका सुध कब आवे है
कह दूंगी मैया से जाके
कान्हा बड़ा सतावे है
इस कोमल काया पर
तुम कब दृष्टि डालोगे
आस है अपने मन मंदिर में
प्रेम का दीप जला लोगे...
जिस पर भटकत जाऊं
मोहन तुम बंसी धरो
मैं व्याकुल हुई जाऊं
ब्रज मे घूमत फिरै हो
बैठी मैं यमुना के तीर
सब गोपियन के प्रेमी तुम
समझ न आवै हमरी पीर
हमरे ह्रदय की पीड़ा का
तुमका सुध कब आवे है
कह दूंगी मैया से जाके
कान्हा बड़ा सतावे है
इस कोमल काया पर
तुम कब दृष्टि डालोगे
आस है अपने मन मंदिर में
प्रेम का दीप जला लोगे...
भक्ति एवं अनुराग के रंग में रंगी सुंदर प्रस्तुति ! बहुत खूब !
ReplyDeleteसादर आभार साधना जी...
Deleteकृष्ण भक्ति को समर्पित अनुपम कृति।।।
ReplyDeleteधन्यवाद अनुषा,,,
Deleteकृष्णा के प्रेम को समर्पित प्यारी रचना।
ReplyDeleteसादर आभार स्मिता,,,
Deleteआपकी लिखी रचना बुधवार 30 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
मेरी रचना को नयी पुरानी हलचल में स्थान देने के लिए शुक्रिया यशोदा जी,,,
Deleteआस है अपने मन मंदिर में
ReplyDeleteप्रेम का दीप जला लोगे...
सुंदर भाव भरे हैं आपने इस रचना में
बार बार पढ़ा, काफी अच्छा लगा ...!!
धन्यवाद भास्कर जी,,,
Deleteसुन्दर प्रेमाभक्ति !
ReplyDeleteप्रतिभा जी सादर आभार,,,
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ReplyDeleteबेहतरीन ...
सादर आभार प्रतिभा जी,,,
Deleteबहुत सुन्दर कृष्ण प्रेमपगी रचना
ReplyDeleteधन्यवाद कविता जी,,,
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