खाक होकर भी मैं किस कदर जल गया
मेरा मुंसिफ ही मेरा कातिल निकल गया
बड़े शान से जिसकी वफा पर इतराते थे 'अरमान'
बेरुखी की कालिख मेरे माथे परे मल गया
मेरी तो सुबहो शाम थी सिर्फ तेरी चाह में
शायद वो शिद्दत नहीं थी मेरी आह में
तू एक खूबसूरत आफताब था जो ढल गया
खाक होकर भी मैं किस कदर जल गया
बेचैन हूं, बेताब हूं
यादों की धुंधली एक किताब हूं
पन्नों से गुलाब की तरह निकल गया
खाक होकर भी मैं किस कदर जल गया
मरहम लगाने वाला चला गया
जिंदगी को मौत से मिला गया
आखिरी वक्त भी आंख से तेरा आंसू निकल गया
खाक होकर भी मैं किस कदर जल गया
मेरा मुंसिफ ही मेरा कातिल निकल गया
बड़े शान से जिसकी वफा पर इतराते थे 'अरमान'
बेरुखी की कालिख मेरे माथे परे मल गया
मेरी तो सुबहो शाम थी सिर्फ तेरी चाह में
शायद वो शिद्दत नहीं थी मेरी आह में
तू एक खूबसूरत आफताब था जो ढल गया
खाक होकर भी मैं किस कदर जल गया
बेचैन हूं, बेताब हूं
यादों की धुंधली एक किताब हूं
पन्नों से गुलाब की तरह निकल गया
खाक होकर भी मैं किस कदर जल गया
मरहम लगाने वाला चला गया
जिंदगी को मौत से मिला गया
आखिरी वक्त भी आंख से तेरा आंसू निकल गया
खाक होकर भी मैं किस कदर जल गया
बहुत खूब अरमान साहब
ReplyDeleteधन्यवाद यश जी
Deleteबेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteछा गए आप तो
dhanyawan anusha...
Deleteमेरी तो सुबहो शाम थी सिर्फ तेरी चाह में
ReplyDeleteशायद वो शिद्दत नहीं थी मेरी आह में
तू एक खूबसूरत आफताब था जो ढल गया
खाक होकर भी मैं किस कदर जल गया
बेहतरीन प्रस्तुति
saadar aabhar smita...
Deletedhanyawad Yashwant g
ReplyDeleteBeautiful poetry Armaan, sharing it :)
ReplyDeleteधन्यवाद व्यास जी,,,
Deleteनज्म को पसंद और शेयर करने के लिए शुक्रिया व्यास जी...
ReplyDeleteबहुत सुंदर ! हर लफ्ज़ लाजवाब है !
ReplyDeleteसादर आभार साधना जी,,,
Deleteबढ़िया :)
ReplyDeleteधन्यवाद जोशी जी,,,
DeleteWash lajawaab Armaaan.... Likhate rahiye..
ReplyDeleteसादर धन्यवाद परी जी, ,
Delete