हर पल ने किया जिक्र तेरा
अब मुझे करार नहीं आता
खामोशी भी शोर मचाती है
क्यों मुझमें तू है समा जाता
आलम तो देखो हिज्र का
खुद से परदा करते हैं
थमी-थमी सी है धड़कन
फिर भी यूं दम भरते हैं
मेरे जैसे जाने कितने
यादों में तेरी खोए हैं
जाने कितने दीवानों के
दिल में कांटे बोए हैं
कुछ तो मिसाल कायम करो
इस दुनिया में हमदर्दी की
और कितने कत्ल करोगे
हद ही कर दी बेदर्दी की
यूं तो तुमने कह डाला
दिल में 'अरमान' कोई नहीं
सुर्ख आंखें सच कह जाती हैं
जिसके लिए तू सोई नहीं...
अब मुझे करार नहीं आता
खामोशी भी शोर मचाती है
क्यों मुझमें तू है समा जाता
आलम तो देखो हिज्र का
खुद से परदा करते हैं
थमी-थमी सी है धड़कन
फिर भी यूं दम भरते हैं
मेरे जैसे जाने कितने
यादों में तेरी खोए हैं
जाने कितने दीवानों के
दिल में कांटे बोए हैं
कुछ तो मिसाल कायम करो
इस दुनिया में हमदर्दी की
और कितने कत्ल करोगे
हद ही कर दी बेदर्दी की
यूं तो तुमने कह डाला
दिल में 'अरमान' कोई नहीं
सुर्ख आंखें सच कह जाती हैं
जिसके लिए तू सोई नहीं...
वाह क्या बात है आसिफ जी।
ReplyDeleteसुर्ख आँखे सच कह जाती है।
जिसके लिए तू सोई नही।
बहुत सुन्दर
सादर शुक्रिया स्मिता,,,
DeleteSundar ahsas
ReplyDeleteशुक्रिया अज़ीज़ साहब,,,
ReplyDeleteवाह।।।
ReplyDeleteबेहतरीन... सुंदर अभिव्यक्ति
सादर धन्यवाद अनुषा,,,
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteसादर आभार मधु जी
Deleteसादर आभार यशोदा जी,,,मेरी नज़्म को नयी पुरानी हलचल में स्थान देने के लिए,,,
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteआज आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा अप्पकी रचनाओ को पढ़कर , और एक अच्छे ब्लॉग फॉलो करने का अवसर मिला !
आप हमारे ब्लॉग में आए, आपका धन्यवाद संजय जी,,,
Deleteबहुत बढ़िया अरमान साहब !
ReplyDeleteऐसे ही लिखते रहें।
सादर
सादर आभार यश जी,,,
DeleteBahut khoob armaan
ReplyDeletethank you pari ji...
Deleteबाखूबी लिखा है उनको ... उनकी अदाओं को ...
ReplyDeletethank you digamber ji...
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