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Thursday, 24 July 2014

हर पल ने किया जिक्र तेरा...

हर पल ने किया जिक्र तेरा
अब मुझे करार नहीं आता
खामोशी भी शोर मचाती है
क्यों मुझमें तू है समा जाता

आलम तो देखो हिज्र का
खुद से परदा करते हैं
थमी-थमी सी है धड़कन
फिर भी यूं दम भरते हैं

मेरे जैसे जाने कितने
यादों में तेरी खोए हैं
जाने कितने दीवानों के
दिल में कांटे बोए हैं

कुछ तो मिसाल कायम करो
इस दुनिया में हमदर्दी की
और कितने कत्ल करोगे
हद ही कर दी बेदर्दी की

यूं तो तुमने कह डाला
दिल में 'अरमान' कोई नहीं
सुर्ख आंखें सच कह जाती हैं
जिसके लिए तू सोई नहीं...

17 comments:

  1. वाह क्या बात है आसिफ जी।
    सुर्ख आँखे सच कह जाती है।
    जिसके लिए तू सोई नही।
    बहुत सुन्दर

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    1. सादर शुक्रिया स्मिता,,,

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  2. शुक्रिया अज़ीज़ साहब,,,

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  3. वाह।।।
    बेहतरीन... सुंदर अभिव्यक्ति

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    1. सादर धन्यवाद अनुषा,,,

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  4. सुन्दर रचना

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    1. सादर आभार मधु जी

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  5. सादर आभार यशोदा जी,,,मेरी नज़्म को नयी पुरानी हलचल में स्थान देने के लिए,,,

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  6. सुन्दर प्रस्तुति !
    आज आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा अप्पकी रचनाओ को पढ़कर , और एक अच्छे ब्लॉग फॉलो करने का अवसर मिला !

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    1. आप हमारे ब्लॉग में आए, आपका धन्यवाद संजय जी,,,

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  7. बहुत बढ़िया अरमान साहब !
    ऐसे ही लिखते रहें।

    सादर

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    1. सादर आभार यश जी,,,

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  8. बाखूबी लिखा है उनको ... उनकी अदाओं को ...

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