सबकुछ खामोश लगने लगा है
जो था अपना ग़ैर लगने लगा है
अब उनसे और क्या उम्मींद करें 'अरमान'
वक्त भी उसका गुलाम लगने लगा है
दीवार-ओ-दर क़ैदखाने हैं
जीने के तो सिर्फ़ बहाने हैं
ये चांद भी आग लगने लगा है
जो था अपना ग़ैर लगने लगा है
उम्मीद थे तुम, आरजू थे तुम
संग जीने की जुस्तजू थे तुम
ख्यालों में बंदिशों का पहरा लगने लगा है
जो था अपना ग़ैर लगने लगा है
पल-पल का जिसे मेरा ख्याल था
बिन मेरे जीना जिसका मुहाल था
बेगानों सी बात करने लगा है
जो था अपना ग़ैर लगने लगा है....
जो था अपना ग़ैर लगने लगा है
अब उनसे और क्या उम्मींद करें 'अरमान'
वक्त भी उसका गुलाम लगने लगा है
दीवार-ओ-दर क़ैदखाने हैं
जीने के तो सिर्फ़ बहाने हैं
ये चांद भी आग लगने लगा है
जो था अपना ग़ैर लगने लगा है
उम्मीद थे तुम, आरजू थे तुम
संग जीने की जुस्तजू थे तुम
ख्यालों में बंदिशों का पहरा लगने लगा है
जो था अपना ग़ैर लगने लगा है
पल-पल का जिसे मेरा ख्याल था
बिन मेरे जीना जिसका मुहाल था
बेगानों सी बात करने लगा है
जो था अपना ग़ैर लगने लगा है....
जो आपका है वो आपका ही रहेगा
ReplyDeleteआपका अपना आपको जरूर मिलेगा
जी अनुषा आपने सही कहां, सभी को अपना ही मिलता है...सादर धन्यवाद
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ReplyDeleteSunder prastutikarannn
ReplyDeleteतहे दिल से शुक्रिया परी जी..
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