कभी सुना है तुमने यादों को
ख़ूब हंसती हैं, ख़ूब रोती हैं
कभी महफ़िल, तो कभी तन्हाई में बोलती हैं
हां, शायद तुमने भी सुना होगा
कल ही तो आईं थीं तुम्हारे ज़हन के कोठे पर
पानी लेकर आईं थी अश्कों की झील से
सहर तकिए पर पड़ी थी कुछ बूंदे
अरे वो देखो तुम्हारे पुराने मकां में कौन है
बचपन तुतलाकर कुछ कहना चाहता है
किसी की उंगली पकड़कर लड़खड़ाते कदम किसके हैं
दीवारों की तख़्ती मुंह चिढ़ा रही हैं
नन्हे हाथों के हरफ़ मुस्कुरा रहे हैं
सच है, बच्चा तो हूं मैं,
सब कहते हैं, बच्चों जैसी बातें करता हूं
बड़ी हमदर्द होती हैं ये यादें
जब कभी तबियत नासाज़ हो जाती है
परदेस में बैठी मां को साथ ले आती हैं
तसल्ली हो जाती है अपनों को करीब पाकर
बड़ी बड़बोली भी होती हैं यादें
बिना बताए बेधड़क चली आईं
और झोले से निकालकर बैठ गईं अपना चिट्ठा
सफ़े पर मेरी ख़ूबसूरत मोहब्बत अंगड़ाई ले रही थी
वैसी ही है जैसे छोड़कर आया था
पाकीज़ा, शर्मीली, सादगी की ज़िंदगी जी रही थी
इंतज़ार की चुनरी का रंग भी नहीं उतरा था
शायद उसके 'अरमान' की मोहब्बत का रंग गहरा था...
ख़ूब हंसती हैं, ख़ूब रोती हैं
कभी महफ़िल, तो कभी तन्हाई में बोलती हैं
हां, शायद तुमने भी सुना होगा
कल ही तो आईं थीं तुम्हारे ज़हन के कोठे पर
पानी लेकर आईं थी अश्कों की झील से
सहर तकिए पर पड़ी थी कुछ बूंदे
अरे वो देखो तुम्हारे पुराने मकां में कौन है
बचपन तुतलाकर कुछ कहना चाहता है
किसी की उंगली पकड़कर लड़खड़ाते कदम किसके हैं
दीवारों की तख़्ती मुंह चिढ़ा रही हैं
नन्हे हाथों के हरफ़ मुस्कुरा रहे हैं
सच है, बच्चा तो हूं मैं,
सब कहते हैं, बच्चों जैसी बातें करता हूं
बड़ी हमदर्द होती हैं ये यादें
जब कभी तबियत नासाज़ हो जाती है
परदेस में बैठी मां को साथ ले आती हैं
तसल्ली हो जाती है अपनों को करीब पाकर
बड़ी बड़बोली भी होती हैं यादें
बिना बताए बेधड़क चली आईं
और झोले से निकालकर बैठ गईं अपना चिट्ठा
सफ़े पर मेरी ख़ूबसूरत मोहब्बत अंगड़ाई ले रही थी
वैसी ही है जैसे छोड़कर आया था
पाकीज़ा, शर्मीली, सादगी की ज़िंदगी जी रही थी
इंतज़ार की चुनरी का रंग भी नहीं उतरा था
शायद उसके 'अरमान' की मोहब्बत का रंग गहरा था...
वाह बहुत खूब ।
ReplyDeleteधन्यवाद जोशी जी,,,सादर आभार,,,
Deleteयादों का बहुत खूबसूरत चित्रण किया है आपने।।।
ReplyDeleteबधाई।।।
धन्यवाद,,,
Deleteयादो की मिठास लिए खूबसूरत ग़ज़ल अरमान जी
ReplyDeleteसादर धन्यवाद स्मिता,,,
Deleteनाज़ुक जज्बातों को बड़ी ही खूबसूरती के साथ नज़्म में पिरोया है ! बहुत ही उम्दा प्रस्तुति !
ReplyDeleteसादर आभार साधना जी,,,
Deleteयादें बिन बताये ... बिन जतलाये ही आती हैं ... बताती नहीं किस किस को साथ लाती हैं ...
ReplyDeleteगहरा एहसास लिए ...
बेशक दिगंबर जी,,,सादर आभार
Deleteमीठी यादें उन मधुर सपनों के सदृश्य होती हैं, लगता है जिन्हें देखते रहें, इनको भी बस याद करते रहें , उम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleteसादर आभार डॉ. साहब...
Deletewaah bhavmaay rachna
ReplyDeleteThank you Kiran ji...
Deleteaap ke blog ka rang kuchh aur kar le achha lagega othervise mat le .
ReplyDeleteJi zaroor..,
Deleteबहुत सुंदर रचना सीधे दिल से निकली अनुभूतियाँ. बधाई.
ReplyDeleteबच्चों जैसा बने रहने में जितना सुकूं हैं वह बड़े होने में नहीं ... यादों पर किसी का जोर नहीं कब आये कब जाए
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
सादर आभार कविता जी
Deleteधन्यवाद भास्कर जी
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