कोई प्यार बो रहा है, कोई नफरतें बो रहा है,
ग़फ़लत की चारपाई पर कोई पैर पसारकर सो रहा है,
उठ नींद से जाग, भाग बंदे भाग,
देख तेरी ज़िंदगी कौन जी रहा है,
बेवजह क्यों शरीक होना तमाशायी दुनिया में,
ये खेल तो पल-पल किसकदर रंग बदल रहा है,
रिश्तों की नाजुक डोर को ज़रा ज़ोर से पकड़,
इस दौर में इंसान मय अहलो अयाल (सपरिवार) खो रहा है,
जिंदा रहेगा सिर्फ उसी का वजूद,
जो ज़ख़्म सी रहा है और ज़हर पी रहा है,
तुम क्यों इतने फ़िक्रमंद लगते हो 'अरमान',
वो देखो कितनी जोर से कोई शख़्स कह रहा है...
ग़फ़लत की चारपाई पर कोई पैर पसारकर सो रहा है,
उठ नींद से जाग, भाग बंदे भाग,
देख तेरी ज़िंदगी कौन जी रहा है,
बेवजह क्यों शरीक होना तमाशायी दुनिया में,
ये खेल तो पल-पल किसकदर रंग बदल रहा है,
रिश्तों की नाजुक डोर को ज़रा ज़ोर से पकड़,
इस दौर में इंसान मय अहलो अयाल (सपरिवार) खो रहा है,
जिंदा रहेगा सिर्फ उसी का वजूद,
जो ज़ख़्म सी रहा है और ज़हर पी रहा है,
तुम क्यों इतने फ़िक्रमंद लगते हो 'अरमान',
वो देखो कितनी जोर से कोई शख़्स कह रहा है...
bahut hi sundar aur sarthak rachna...
ReplyDeletedhanyawad Smita...
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