काश कोई लेकर पता तेरा आए
हम बन के हवा तुझको फिर छू आएं
छोड़कर चले गए किस जहां में
सांस लूं तो तेरी खुशबू आए
रिश्ते-नाते बेमतलब हो गए
ख्वाब भी थक हार कर सो गए
हर आहट में लगे जैसे तू आए
हम बन के हवा तुझको फिर छू आए
तेर गली से जब गुजरते हैं
उस शोख नजर को तरसते हैं
क्यों लगता है कि तू रूबरू आए
हम बनके हवा तुझको फिर छू आए
आवाज लगाती हैं गुमनाम सी हसरतें
जवाब मांगती हैं तेरी हर एक शिकायतें
महफिल-ए-'अरमान' में तेरी आरजू आए
हम बनके हवा उनको फिर छू आए
behatreen...bahut badhiya
ReplyDeleteThank you anusha
Deleteबढ़िया !
ReplyDeleteShukriya Joshi ji
DeleteBehad umda....!!
ReplyDeleteShukriya pari ji...
Deleteहर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
ReplyDeleteसादर आभार
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