अहसासों से जुदा होकर इक एहसान कर दो
मेरी रूह जो ले गए हो मेरे नाम कर दो
दिल के किसी कोने में सिसक रही है मोहब्बत तुम्हारी
कुछ और ग़म देकर इसे बेजान कर दो
रूठने मनाने की आदत फ़ना हुई
ज़िंदगी न हुई जैसे कोई गुनाह हुई
मेरे वजूद का भी क़त्ल सरेआम कर दो
कुछ और ग़म देकर इसे बेजान कर दो
मेरी आंख का पानी तेरे ज़ुल्म की निशानी है
ज़र्रा ज़र्रा बयां करता मेरे दर्द की कहानी है
जो कुछ बची हो सुबह उसे भी शाम कर दो
कुछ और ग़म देकर इसे बेजान कर दो
खूबसूरत लम्हों का इक रिसाला है
टूटा-फूटा ही सही पर इसे संभाला है
छोटी सी गुजारिश का पूरा 'अरमान' कर दो
कुछ और ग़म देकर इसे बेजान कर दो
मेरी रूह जो ले गए हो मेरे नाम कर दो
दिल के किसी कोने में सिसक रही है मोहब्बत तुम्हारी
कुछ और ग़म देकर इसे बेजान कर दो
रूठने मनाने की आदत फ़ना हुई
ज़िंदगी न हुई जैसे कोई गुनाह हुई
मेरे वजूद का भी क़त्ल सरेआम कर दो
कुछ और ग़म देकर इसे बेजान कर दो
मेरी आंख का पानी तेरे ज़ुल्म की निशानी है
ज़र्रा ज़र्रा बयां करता मेरे दर्द की कहानी है
जो कुछ बची हो सुबह उसे भी शाम कर दो
कुछ और ग़म देकर इसे बेजान कर दो
खूबसूरत लम्हों का इक रिसाला है
टूटा-फूटा ही सही पर इसे संभाला है
छोटी सी गुजारिश का पूरा 'अरमान' कर दो
कुछ और ग़म देकर इसे बेजान कर दो
खूबसूरत लम्हों का इक रिसाला है
ReplyDeleteटूटा-फूटा ही सही पर इसे संभाला है
छोटी सी गुजारिश का पूरा 'अरमान' कर दो
कुछ और ग़म देकर इसे बेजान कर दो
बेहतरीन नज्म अरमान जी
सादर आभार अनुषा,,,
Deleteवाह....... उम्दा.
ReplyDeleteबार बार पढने का दिल करता है.
शुक्रिया अमित जी,,,
Deleteवाह ! बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeletethank you sadhna ji...
Deleteवाह सुन्दर उम्दा प्रस्तुति खासकर ये पंक्तियाँ तो दिल को छू गईं
ReplyDeleteखूबसूरत लम्हों का इक रिसाला है
टूटा-फूटा ही सही पर इसे संभाला है
सादर आभार संजय जी,,,
Deleteबहुत ही खूबसूरत नज़्म आसिफ जी। बहुत ही सुन्दरता से आपने प्रेम में विछोह के दर्द को समेटा है।
ReplyDeleteशुक्रिया स्मिता,,,
Deleteअनुपम प्रस्तुति......आपको और समस्त ब्लॉगर मित्रों को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ......
ReplyDeleteनयी पोस्ट@बड़ी मुश्किल है बोलो क्या बताएं