जब हमनवा के खयालात बदल जाते हैं
हर रिश्ते में मतलब नज़र आते हैं
कसूर हो सकता है मेरे भरोसे का
वो भी अब नाज़ कहाँ उठाते हैं
आदत सी हो गयी थी
के तू सह लेगा मेरे गुस्से को
मुस्करा के टाल देगा ये सोच के
कि इसकी तो आदत है बड़बड़ाने की
लेकिन शायद नहीं रही वो आदत भी तुम्हारी
अब क्यों सुनोगे तुम बात हमारी
क्या तुम्हे भी लग गयी है मेरी बीमारी
लड़ने लगे हो, बिगड़ने लगे हो
मेरी तरह तुम भी झगड़ने लगे हो
अचानक ज़िंदगी का फूल खिल गया
प्यार में तुम्हे आत्मसम्मान मिल गया
इश्क़ में आत्मसम्मान की जगह कहाँ होती है
दो दिलों में ये घुस जाये तो ज़िंदगी रोती है
फिर कैसे एक दूसरे को संभालेंगे
गुस्सा, आत्मसम्मान हमे मार डालेंगे
चलो रिश्ता अब और न निभाओ
लेकिन मेरी बीमारी खुद को न लगाओ
मैं इसकी मार से बहुत कुछ हारा हूँ
हद से ज़्यादा मोहब्बत का मारा हूँ
तेरी ज़िंदगी का बदनुमा एहसास हूँ
तू बड़ी अच्छी हे चिट्ठी मैं थोड़ा बदमाश हूँ...
हर रिश्ते में मतलब नज़र आते हैं
कसूर हो सकता है मेरे भरोसे का
वो भी अब नाज़ कहाँ उठाते हैं
आदत सी हो गयी थी
के तू सह लेगा मेरे गुस्से को
मुस्करा के टाल देगा ये सोच के
कि इसकी तो आदत है बड़बड़ाने की
लेकिन शायद नहीं रही वो आदत भी तुम्हारी
अब क्यों सुनोगे तुम बात हमारी
क्या तुम्हे भी लग गयी है मेरी बीमारी
लड़ने लगे हो, बिगड़ने लगे हो
मेरी तरह तुम भी झगड़ने लगे हो
अचानक ज़िंदगी का फूल खिल गया
प्यार में तुम्हे आत्मसम्मान मिल गया
इश्क़ में आत्मसम्मान की जगह कहाँ होती है
दो दिलों में ये घुस जाये तो ज़िंदगी रोती है
फिर कैसे एक दूसरे को संभालेंगे
गुस्सा, आत्मसम्मान हमे मार डालेंगे
चलो रिश्ता अब और न निभाओ
लेकिन मेरी बीमारी खुद को न लगाओ
मैं इसकी मार से बहुत कुछ हारा हूँ
हद से ज़्यादा मोहब्बत का मारा हूँ
तेरी ज़िंदगी का बदनुमा एहसास हूँ
तू बड़ी अच्छी हे चिट्ठी मैं थोड़ा बदमाश हूँ...
प्रेम और आत्मसमान दोनों में प्रतिस्पर्धा कहाँ ... साथसाथ चलते हैं दोनों ...
ReplyDeletesahi kaha apne naswa ji...
Deleteबेहद उम्दा सर
ReplyDeleteshukriya bhaskar ji..
Deleteदिल और दिमाग की रस्साकशी को बड़ी खूबसूरत अभिव्यक्ति दी है ! सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteshukriya sadhna ji,,,,
Deletebehatreen
ReplyDeleteshukriya anusha...
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