आइने में देखकर अपना चेहरा
सिहर गया बदन मेरा
अचानक कुछ बदल गया था
अजीब बदसूरती में ढल गया था
बरस रही थी उस पर फिटकार
जैसे किसी ने थूका हो बार-बार
नफरतें बालों से टपक रही थीं
लबों से गालियां लिपट रही थीं
बद्दुआएं रेंग रहीं थीं माथे पर
मनहूसियत का लग रहा था घर
जिल्लत आंखों से झांक रही थी
शरम तो खड़ी मुंह ताक रही थी
जबां हौले से रही थी दुत्कार
हर तरफ से लग रहा था मक्कार
अरमान के चेहरे से खून रिस रहा था
मोहब्बत का नामोनिशा नहीं दिख रहा था...
सिहर गया बदन मेरा
अचानक कुछ बदल गया था
अजीब बदसूरती में ढल गया था
बरस रही थी उस पर फिटकार
जैसे किसी ने थूका हो बार-बार
नफरतें बालों से टपक रही थीं
लबों से गालियां लिपट रही थीं
बद्दुआएं रेंग रहीं थीं माथे पर
मनहूसियत का लग रहा था घर
जिल्लत आंखों से झांक रही थी
शरम तो खड़ी मुंह ताक रही थी
जबां हौले से रही थी दुत्कार
हर तरफ से लग रहा था मक्कार
अरमान के चेहरे से खून रिस रहा था
मोहब्बत का नामोनिशा नहीं दिख रहा था...
कल 21/जनवरी/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
shukriya yash ji...
DeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबेहद उम्दा सोच के साथ लिखी गई कविता
ReplyDeleteशायद इसलिए ही मन में कोमलता और प्रेम होना चाहिए ... जो मन में हो बाहर जो दीखता है ...
ReplyDeletebeshak naswa ji...sadar abhar...
Delete