बड़ी बत्तमीज होती हैं यादें
भगाए नहीं भागतीं
कभी इधर से तो कभी उधर से
टपक ही जाती हैं
कभी झूलतीं हैं तुम्हारे दुप्पटों से
तो कभी बिस्तर पर पड़ी रहती हैं करवट लिए
तो कभी टीवी से निकलकर गुनगुनाने लगती हैं
खाली पड़ी फ्रिज से भड़भड़ाकर बाहर आ जाती हैं
और दूध के बरतन के साथ रसोई तक पहुंच जाती हैं
रसोई में बरतनों से तस्वीर दिखाने लगती हैं
आटा-चावल कब के दम तोड़ चुके मुंतजिर होकर
तरसते रहे मेरी तरफ हसरत भरी निगाह लिए हुए
तिवाई-बेलन बुदुर-बुदुर बड़बड़ाते हैं
तुम दोनों एक ही प्लेट में खाते थे खाना
क्या हमें भी है यहीं पड़े-पड़े मर जाना
अलमारी में पड़े कपड़े रोज बुलाते हैं
फेर लेता हूं उनसे नजर
कि कहीं कुछ सवाल न पूछ बैठें
लाइट भी बंद होने से इनकार करती है
उम्मीद की रौशनी अभी भी जला रखी है तुम्हारी आमद की
कितनी सारी यादें
उचल कूद करती रहतीं हैं
यहां से वहां, वहां से यहां
अच्छा लगता है इनके यहां होने से
आवाज देती हैं तुम्हारी हर इक कोने से
फिर कहां मैं तन्हा हूं
इतनी चीजें जो दे गए हो 'अरमान' को तुम
तन्हाई तो जल रही है इन यादों को देखकर....
भगाए नहीं भागतीं
कभी इधर से तो कभी उधर से
टपक ही जाती हैं
कभी झूलतीं हैं तुम्हारे दुप्पटों से
तो कभी बिस्तर पर पड़ी रहती हैं करवट लिए
तो कभी टीवी से निकलकर गुनगुनाने लगती हैं
खाली पड़ी फ्रिज से भड़भड़ाकर बाहर आ जाती हैं
और दूध के बरतन के साथ रसोई तक पहुंच जाती हैं
रसोई में बरतनों से तस्वीर दिखाने लगती हैं
आटा-चावल कब के दम तोड़ चुके मुंतजिर होकर
तरसते रहे मेरी तरफ हसरत भरी निगाह लिए हुए
तिवाई-बेलन बुदुर-बुदुर बड़बड़ाते हैं
तुम दोनों एक ही प्लेट में खाते थे खाना
क्या हमें भी है यहीं पड़े-पड़े मर जाना
अलमारी में पड़े कपड़े रोज बुलाते हैं
फेर लेता हूं उनसे नजर
कि कहीं कुछ सवाल न पूछ बैठें
लाइट भी बंद होने से इनकार करती है
उम्मीद की रौशनी अभी भी जला रखी है तुम्हारी आमद की
कितनी सारी यादें
उचल कूद करती रहतीं हैं
यहां से वहां, वहां से यहां
अच्छा लगता है इनके यहां होने से
आवाज देती हैं तुम्हारी हर इक कोने से
फिर कहां मैं तन्हा हूं
इतनी चीजें जो दे गए हो 'अरमान' को तुम
तन्हाई तो जल रही है इन यादों को देखकर....
bahut pyaaaaaari.............. :)
ReplyDeleteshukrya lori ji...
Deleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeletesaadar abhaar sadhna ji...
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteshukriya aziz saheb...
Deletebahut hi badhiya... really touching
ReplyDelete:)
Deleteउत्तम रचना
ReplyDeleteshukriya harshita ji...
Deleteबहुत खूब अरमान साहब
ReplyDeleteसादर
dhanyawad yash ji...
Deleteकितनी सारी यादें
ReplyDeleteउचल कूद करती रहतीं हैं
यहां से वहां, वहां से यहां
अच्छा लगता है इनके यहां होने से
आवाज देती हैं तुम्हारी हर इक कोने से
फिर कहां मैं तन्हा हूं
इतनी चीजें जो दे गए हो 'अरमान' को तुम
तन्हाई तो जल रही है इन यादों को देखकर....
खूबसूरत, उदास ग़मज़दा !
बिलकुल आम , नयी सदी की ग़ज़लों की तरह।
दिल छू गयीं………………।
shukriya lori.. :)
Deleteवाह...लाजवाब प्रस्तुति...
ReplyDeleteऔर@जा रहा है जिधर बेखबर आदमी
shukriya prasanna ji...
ReplyDeleteफिर कहां मैं तन्हा हूं
ReplyDeleteइतनी चीजें जो दे गए हो 'अरमान' को तुम
तन्हाई तो जल रही है इन यादों को देखकर....
खूबसूरत
shukriya bhai
DeleteHaye.. 💓
ReplyDeleteHaye.. 💓
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