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Sunday, 5 November 2017

क़लम तो तोड़ दूं...

क़लम तो तोड़ दूं,

बोलना भी छोड़ दूं

पर क्या गारंटी है

कल कोई और नहीं लिखेगा

कल कोई और नहीं बोलेगा...


हवाओं के रुख मोड़े नहीं जाते

खुद को बचाना होता है

मंज़िल ख़ुद नहीं आती

चलकर जाना होता है

मैं चलना तो छोड़ दूं

पर क्या गारंटी है

कल कोई और नहीं चलेगा

मंज़िल से नहीं मिलेगा


मज़बूत हैं पर मजबूर हैं

जो भी है सब मंज़ूर है

लफ़्जों में मेरी बंदिश सही

वक्त तेरी पकड़ से दूर है

पर क्या गारंटी है

कल कोई और नहीं उठेगा

हक के लिए नहीं लड़ेगा...

4 comments:

  1. आदरणीया /आदरणीय, अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है आपको यह अवगत कराते हुए कि सोमवार ०६ नवंबर २०१७ को हम बालकवियों की रचनायें "पांच लिंकों का आनन्द" में लिंक कर रहें हैं। जिन्हें आपके स्नेह,प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन की विशेष आवश्यकता है। अतः आप सभी गणमान्य पाठक व रचनाकारों का हृदय से स्वागत है। आपकी प्रतिक्रिया इन उभरते हुए बालकवियों के लिए बहुमूल्य होगी। .............. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"

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  2. बहुत सुन्दर....
    वाह !!!!👌👌

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