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Saturday, 12 January 2013

कानून-ए-मोहब्बत के भी अजीब से उसूल होते हैं,

कानून-ए-मोहब्बत के भी अजीब से उसूल होते हैं,
कत्ल हमारा होता है और कातिल भी हम ही होते हैं,

अब कौन चलाए इनके गुनाहों पर मुकदमा,
इस अदालत में यही वकील और यही जज होते हैं,

कहां से ढूंढकर लाएं एक अदद गवाह,
किसी को अपने जुर्म की खबर ही कहां देते हैं,

गर हौसला है तो सामने से आकर वार करो,
जंगों में लड़ने वाले पर्दों में कहां होते हैं,

मेरी सजा-ए-मौत का फैसला जरा हौले से सुनाना,
कहीं रुसवा न हो जाऊं , यहां दीवारों के भी कान होते हैं

क्यूं ऐसे जहां में रखते हो चाहत का ‘अरमान’
जहां हुस्नवाले करते हैं जुल्म और इश्कवाले रोते हैं।।।।
- अरमान आसिफ इकबाल

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