चलो हम तुम मिलकर एक नजम लिखते हैं
शब के कोयले से दीवार-ए-वादों पर कसम लिखते हैं
वक्त की बारिश भी धो न पाये इस इबारत को
कुछ ऐसी ही त्वारीख इस जनम लिखते हैं
फलक से समेट लेते हैं चांद तारों को
हर एक पर नाम-ए-सनम लिखते हैं
ख्वाहिशों की पतंग खूब ढील देके तानो
ऐसे खुले आसमान किस्मत से कम मिलते हैं
अश्कों को डाल आएं गहरे समंदर में
गमों के दरिया भी जाकर वहीं मिलते हैं
वफाओं की पोशाक से होगी हिफाजत हमारी
इश्क की वादी में मौसम भी रुख बदलते हैं
कहीं कलम न हो जाए मोहब्बत से खाली अरमान
यही तो सोचकर जवाब में नफरतें कम लिखते हैं
- अरमान आसिफ इकबाल
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