मोहब्बत की राह को कुछ इस तरह गुलज़ार करते हैं
अनजानी मंजिल को ख्वाबों से तैयार करते हैं
भले वो फेर लें हमे देखकर मुह अपना
हम तो उनकी बेरुखी से भी प्यार करते हैं
पता चला है के वो शरमों -ओ -हया के हैं कायल
वरना हम भी दिल -ए -ख्वाहिशें हज़ार रखते है
रुख से ज़रा नकाब आहिस्ता से हटाना
ज़मानेवाले भी दिल बेकरार रखते हैं
यकीं न आये तो किसी से ये पूछ लो जाकर
भला जवाब भी कभी खुद सवाल करते हैं
सीख रहा हूँ उल्फत के दाँव -पेच 'अरमान'
नाज़ुक 'गुलाब' ही काँटों से वार करते हैं ...अरमान आसिफ इकबाल
नाज़ुक 'गुलाब' ही काँटों से वार करते हैं
ReplyDeleteशानदार पंक्ति
बेहतरीन ग़ज़ल
आप भी सैर कीजिये हमारे बागीचे का
सादर
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कृपया वर्ड व्हेरिफिकेशन का ऑप्शन हटा दीजिये