तेरे मेरे बीच महज़
फ़ासले की दीवार है
और बस कुछ नहीं
तू रहती है यहीं कहीं...
मैंने हवाओं को भेजकर
तेरी ख़ुशबू मंगाई है
चांदनी तेरे नूर की
चमक साथ लेकर आई है
देख लेता हूं रात में
तेरी आंखों का काजल
भीग जाता हूं इश्क़ में
जब बरसते हैं बादल
मासूमियत मिल जाती है
किसी बच्ची की शकल में
ख़ुद को पा लेता हूं
तेरी ज़िंदगी के दख़ल में
नज़र में बने रहते हो
किसी तस्वीर की तरह
दुआओं के लिए ज़रूरी
जैसे कोई पीर की तरह
ख़ामोशी में ढूंढ लेता हूं
अरमानों का इक़रार
फ़ासले से कम नहीं होता
तेरी मोहब्बत मेरा प्यार
तेरे मेरे बीच महज़
फ़ासले की दीवार है
और बस कुछ नहीं
तू रहती है यहीं कहीं...