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Monday 3 April 2017

मैं धूप हूं, तुम छांव हो

मैं धूप हूं, तुम छांव हो
मैं सुनसान,तुम गांव हो
धुआं-धुआं सा उड़ता इश्क़
मैं सर्द हवा, तुम अलाव हो
तपता हूं रेत की तरह
करीब समंदर है
जलती हैं तमन्नाओं की लहरें
कैसा अजीब मंज़र है
मैं हारी बाज़ी, तुम दांव हो
मैं धूप हूं, तुम छांव हो
मैं सुनसान,तुम गांव हो

फकीर से हो गए हैं अल्फ़ाज़
फ़िज़ाओं में गूंजे बस यही आवाज़
मैं ख़ामोश रात, तुम साज़ हो
मैं धूप हूं, तुम छांव हो
मैं सुनसान,तुम गांव हो

बड़ी अजीब सी ये बात हुई
ज़िंदगी से यूं अचानक मुलाक़ात हुई
फिर न सुबह हुई, फिर न रात हुई
'अरमां' कुछ तो बोलो, क्या बात हुई
मैं सफ़र हूं, तुम पांव हो
मैं धूप हूं, तुम छांव हो
मैं सुनसान,तुम गांव हो...