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Thursday 11 May 2017

ख़्वाब का क्या... ख़्वाब हैं

ख़्वाब का क्या... ख़्वाब हैं
 चलो आज बिखरे हुए ख्वाब इकट्ठे किए जाएं
कुछ टूटे, कुछ फूटे,कुछ चकनाचूर ख़्वाब
जो कभी देखे थे बंद और खुली आंखों से
 समेट कर उनमें से कुछ काम के निकाले जाएं

कुछ अधूरे हैं, कुछ धुंधले हैं
कुछ ज़रा से रह गए पूरे होने को
 फिर झाड़ पोछ के इन्हें देखा जाए
शायद एक आध हों ऐसे
जिनको मंज़िल तक पहुंचाया जाए

उम्मीद कम है किसी के सलामत होने की
मेहनत का रंग तो आज भी वैसा है
पर वक्त का मिजाज़॒ रंगीन किया जाए

ख़्वाब का काम ही है टूटकर बिखर जाना
और चुभते रहना हमेशा-हमेशा के लिए
आंखों में
'अरमान' हैं जो हार नहीं मानते इनके बिखरने से
और समेट लेते हैं इन्हें दोबारा फिर टूटने के लिए...
..........अरमान.....

Monday 8 May 2017

कभी कभी सोचता हूं...

कभी कभी सोचता हूं
कई चीज़े बेअसर बेज़ार हो गई हैं
कोई मोल नहीं रहा इनका
बेवजह से लगने लगीं हैं

एक ज॒ज़्बात हैं जो किसी काम के नहीं
लेकिन फिर भी मचलते हैं
रोज़ क़त्ल करता हूं
पर बड़ी बेशर्मी से ज़िंदा हो जाते हैं
मानों किसी ने कसम दी हो न मरने की

कुछ बेहिसाब ख़याल भी हैं
बेहयाई के साथ मंडराते हैं
चील की तरह नोचने के लिए
बेजान से जिस्म को

सुकून भी इनसे कुछ कम नहीं
होता है कहीं आसपास मौजूद
लेकिन कभी मिलता नहीं
मुद्दत हुई मुलाकात हुए

हां मोहब्बत को कई बार बोला है
कि अब तो चली जाओ
कि तुम्हारा पुरसाहाल लेने वाला कोई नहीं
मगर क्या करूं ऐसी वफादार मोहब्बत है
कि जाने का नाम नहीं लेती

सोचता हूं एक दिन सबको साथ लेके
कहीं लगता हो बाज़ार इनका
तो कर दूं ख़रीद फरोख्त
कुछ जज़्बात बेचूं, कुछ सुकून खरीदूं और मोहब्बत को कहीं भीड़ में छोड़कर चला आऊं...लावारिस...

Thursday 4 May 2017

चलो आज थोड़ा वक्त सा हो जाऊं

कभी ख़ुद को पाऊं कभी खो जाऊं
चलो आज थोड़ा वक्त सा हो जाऊं
इन लम्हों को कर दूं ज़रा आवारा
थोड़ा सा हंस लूं थोड़ा रो जाऊं

चलता रहूं दिन रात
करता रहूं बातों में बात
कहां ठहरूं कहां सो जाऊं
चलो आज थोड़ा वक्त सा हो जाऊं

सफ़र में मेरे संग होते बहुत हैं
किसको रोकूं सब खोते बहुत हैं
यादों के दरिया में ख़ुद को डुबो जाऊं
चलो आज थोड़ा वक्त सा हो जाऊं

कुछ अरमां ,कुछ  सपने साथ चलते हैं
कुछ बनते हैं मिसाल, कुछ हाथ मलते हैं
कहीं आसमां तो कहीं ज़मीं हो जाऊं
चलो आज थोड़ा वक्त सा हो जाऊं...