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Sunday 8 September 2013

मैं दंगा हूं

मैं दंगा हूं, फसाद और बलवा के नाम से भी बंदे को मशहूरियत हासिल है। अभी तक मेरे मां-बाप का सही- सही पता नहीं चल पाया है। आप मुझे उस नाजायज औलाद की तरह देख सकते हैं, जो पैदा तो किया जाता है पर उसकी जिम्मेदारी कोई नहीं लेता। कुछ सामाजिक प्राणी मेरे ऊपर आरोप लगाते हैं कि मेरी जिंदगी तो कुछ दिनों की होती है, पर मैं कईयों की जिंदगी छीन लेता हूं और कईयों की जिंदगी तबाह कर देता हूं। मुझ पर बेवजह इल्जाम लगाए जाते हैं कि मैंने किसी बहन का भाई छीन लिया तो किसी मां का बेटा या किसी औरत का शौहर। सुना है इंसानों की दुनिया में हर गुनाह की एक सजा मुकर्रर है। मेरे माथे पर भी हत्या, लूट, आगजनी, बलात्कार जैसे संगीन इल्जाम हैं। तो ऐ दो पैर के जानवरों, क्यों नहीं देते हो मुझे भी सजा। मुझ पर भी चलाओं मुकदमा। लटका दो मुझे भी फांसी पर। ताकि दोबारा न पैदा होऊं, किसी के घर को बर्बाद करने के लिए। क्या मेरे लिए नहीं है कोई अदालत जो मेरा फैसला कर दे???...अरमान आसिफ इकबाल

2 comments:

  1. बढ़िया प्रस्तुति

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  2. Dangaa ek peedeh paristhiti paida karta hai ....kash kabhi naa ho ye danga... Bahut khoob..

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