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Friday 9 June 2017

तेरा चेहरा है या कोई मर्ज़ की शिफ़ा

तेरा चेहरा है या कोई शिफ़ा

देखते ही रंगत बदल जाती है

तेरा चेहरा है या कोई मर्ज़ की शिफ़ा

देखते ही मिज़ाज की रंगत बदल जाती है

झील सी आंखे हैं या कोई समंदर

डूबने को तबियत मचल जाती है

सुकुन मिलता है तुझे देखकर कुछ ऐसे

जैसे तपते रेत पे सर्द हवा चल जाती है

न कोई चर्चा तेरा न कोई ज़िक्र तेरा

न जाने क्यों तेरी फिर बात निकल आती है

सोचता हूं छुपा लूं इस ज़माने से तुझे

ये दुनिया है, बात-बात पे बदल जाती है

भले मिले न मिले एक पल का साथ तेरा

इन ख़्यालों से सुबह-शाम ढल जाती है

ज़मीं पे रहता है एक चांद और भी

अक्सर सितारों में भी बात चल जाती है

किसी हूर के नूर की क्या बात करें

तेरी आब देखके शमा भी जल जाती है

अरमान है बरकार रहे तेरे चेहरे की रौनक

हर दुआ,  इसी दुआ में बदल जाती है...

2 comments:

  1. सक्त हिदायत दी है मैंने तुम्हरे ख्वाबों को ना आने की.....लेकिन तुम्हे जब भी सोचते है....हर हिदायत बदल जाती है......hahaha first try

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    1. आपका आभार अंतिमा...

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