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Thursday 7 February 2013


मोहब्बत  की  राह  को  कुछ  इस  तरह  गुलज़ार  करते  हैं
अनजानी  मंजिल  को  ख्वाबों  से  तैयार  करते  हैं

भले  वो  फेर  लें  हमे  देखकर  मुह  अपना
हम  तो उनकी  बेरुखी से भी प्यार  करते  हैं

पता  चला  है  के  वो  शरमों -ओ -हया  के  हैं  कायल
वरना  हम  भी  दिल -ए -ख्वाहिशें  हज़ार  रखते  है

रुख  से  ज़रा  नकाब  आहिस्ता  से  हटाना
ज़मानेवाले  भी  दिल  बेकरार  रखते  हैं

यकीं  न  आये  तो  किसी  से  ये  पूछ  लो  जाकर
भला  जवाब  भी  कभी  खुद  सवाल  करते  हैं

सीख  रहा   हूँ  उल्फत  के  दाँव -पेच  'अरमान'  
नाज़ुक  'गुलाब' ही  काँटों  से  वार  करते  हैं ...अरमान आसिफ इकबाल

1 comment:

  1. नाज़ुक 'गुलाब' ही काँटों से वार करते हैं
    शानदार पंक्ति
    बेहतरीन ग़ज़ल
    आप भी सैर कीजिये हमारे बागीचे का
    सादर
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.com/
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    कृपया वर्ड व्हेरिफिकेशन का ऑप्शन हटा दीजिये

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