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Tuesday, 20 January 2015

बड़ी बत्तमीज होती हैं यादें

बड़ी बत्तमीज होती हैं यादें
भगाए नहीं भागतीं
कभी इधर से तो कभी उधर से
टपक ही जाती हैं
कभी झूलतीं हैं तुम्हारे दुप्पटों से
तो कभी बिस्तर पर पड़ी रहती हैं करवट लिए
तो कभी टीवी से निकलकर गुनगुनाने लगती हैं
खाली पड़ी फ्रिज से भड़भड़ाकर बाहर आ जाती हैं
और दूध के बरतन के साथ रसोई तक पहुंच जाती हैं
रसोई में बरतनों से तस्वीर दिखाने लगती हैं
आटा-चावल कब के दम तोड़ चुके मुंतजिर होकर
तरसते रहे मेरी तरफ हसरत भरी निगाह लिए हुए
तिवाई-बेलन बुदुर-बुदुर बड़बड़ाते हैं
तुम दोनों एक ही प्लेट में खाते थे खाना
क्या हमें भी है यहीं पड़े-पड़े मर जाना
अलमारी में पड़े कपड़े रोज बुलाते हैं
फेर लेता हूं उनसे नजर
कि कहीं कुछ सवाल न पूछ बैठें
लाइट भी बंद होने से इनकार करती है
उम्मीद की रौशनी अभी भी जला रखी है तुम्हारी आमद की
कितनी सारी यादें
उचल कूद करती रहतीं हैं
यहां से वहां, वहां से यहां
अच्छा लगता है इनके यहां होने से
आवाज देती हैं तुम्हारी हर इक कोने से
फिर कहां मैं तन्हा हूं
इतनी चीजें जो दे गए हो  'अरमान' को तुम
तन्हाई तो जल रही है इन यादों को देखकर....






Monday, 19 January 2015

आइने में देखकर अपना चेहरा

आइने में देखकर अपना चेहरा
सिहर गया बदन मेरा
अचानक कुछ बदल गया था
अजीब बदसूरती में ढल गया था
बरस रही थी उस पर फिटकार
जैसे किसी ने थूका हो बार-बार
नफरतें बालों से टपक रही थीं
लबों से गालियां लिपट रही थीं
बद्दुआएं रेंग रहीं थीं माथे पर
मनहूसियत का लग रहा था घर
जिल्लत आंखों से झांक रही थी
शरम तो खड़ी मुंह ताक रही थी
जबां हौले से रही थी दुत्कार
हर तरफ से लग रहा था मक्कार
अरमान के चेहरे से खून रिस रहा था
मोहब्बत का नामोनिशा नहीं दिख रहा था...









चलो तुम ही बना लो अपनी जिंदगी,


चलो तुम ही बना लो अपनी जिंदगी,
शायद तुम्हें अपनी खोई हुई जिंदगी मिल जाए
वो हंसी जो तुमने कभी महसूस की थी,
 वो आजादी की उड़ान तुम्हारे जज्बातों में थी
गुम हो गई थी किसी ‘अरमान’ के बंधनों में बंधके,
कितना जालिम रहा होगा वो वक्त
हर पल महसूस की होगी घुटन तुमने,
जार-जार खून के आंसू रोती होगी,
गले लगा लेती होगी हंस के उस दरिंदे के सारे जुल्म,
 कैद कर रखा था पिंजरे में
कल्पना से परे थी क्रूरता उसकी,
 सोचने भर से सिहरन दौड़ जाती है
आज भी उस खौफनाक चेहरे की नजरें
गड़ी हुई महसूस करती होगी जिस्म में
वो खूनी पंजे उसके, जो दिन रात नोंचते थे
 चील कौवों की तरह बदन
तड़प जाती होगी दिन रात ख्वाबों का बलात्कार होते देखकर
शैतान था, करता भी क्या,
आदत हो गई थी हैवानियत की
रहम करता भी तो कैसे,
जहन में जहर जो भरा था......

Wednesday, 14 January 2015

जब हमनवा के खयालात बदल जाते हैं

जब हमनवा के खयालात बदल जाते हैं
हर रिश्ते में मतलब नज़र आते हैं
कसूर हो सकता है मेरे भरोसे का
वो भी अब नाज़ कहाँ उठाते हैं

आदत सी हो गयी थी
के तू सह लेगा मेरे गुस्से को
मुस्करा के टाल देगा ये सोच के
कि इसकी तो आदत है बड़बड़ाने की
लेकिन शायद नहीं रही वो आदत भी तुम्हारी
अब क्यों सुनोगे तुम बात हमारी
क्या तुम्हे भी लग गयी है मेरी बीमारी

लड़ने लगे हो, बिगड़ने लगे हो
मेरी तरह तुम भी झगड़ने लगे हो
अचानक ज़िंदगी का फूल खिल गया
प्यार में तुम्हे आत्मसम्मान मिल गया

इश्क़ में आत्मसम्मान की जगह कहाँ होती है
दो दिलों में ये घुस जाये तो ज़िंदगी रोती है

फिर कैसे एक दूसरे को संभालेंगे
 गुस्सा, आत्मसम्मान हमे मार डालेंगे

चलो रिश्ता अब और न निभाओ
लेकिन मेरी बीमारी खुद को न लगाओ
मैं इसकी मार से बहुत कुछ हारा हूँ
हद से ज़्यादा मोहब्बत का मारा हूँ

तेरी ज़िंदगी का बदनुमा एहसास हूँ
तू बड़ी अच्छी हे चिट्ठी मैं थोड़ा बदमाश हूँ...





Saturday, 10 January 2015

क्यों भाग रहा है उस मंज़िल की तरफ

क्यों भाग रहा उस मंज़िल की तरफ
कहता चीख-चीख के हर इक हरफ
ठिकाना तेरा यहाँ नहीं
जो छोड़ गया बीच राह में कहीं
माना के वहां तन्हाई है
साथ तेरे तेरी परछाई है
फिर कहाँ तू अकेला है
जो चला गया वो खुद अकेला है
तू तो वहीँ पर है
उसे अपनी मंज़िल का डर है
तू जितना भी पीछे भागेगा
वो उतना ही आगे भागेगा
ठहर जा सांस लेले
बड़े ज़ालिम हे ज़िंदगी के मेले
तेरे पास खोने को कुछ नहीं
उसके पास रोने को कुछ नहीं
जब कभी रास्ता भटक जाएगा
लौटकर फिर इसी राह पर आएगा
उसे उसके हाल पर छोड़ दे
अपने क़दमों को वापस मोड़ दे
इंतज़ार कर शायद वो आ जाये
बस तेरा चेहरा न बदलने पाये
अगर कहीं तू बदल जाएगा
लौटने वाला पहचान न पाएगा
अरमान फिर बहुत वो घबराएगा
दुनिया की भीड़ में कहीं खो जाएगा।।।।