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Friday 16 March 2012

सुपरमैन न बैटमैन, सिर्फ कॉमनमैन



अरे दादा इतने परेशान क्यों दिख रहे हो? आखिर माजरा क्या है? क्या ममता दीदी ने वित्त मंत्री बदलने के लिए सरकरार  से सिफारिश की है? क्योंकि रेल बजट को पेश करने के बाद रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी के सिर पर तलवार लटक रही है। सुना है आपने भी ऐसा बजट पेश कर दिया कि लेने के देने पड़ गए। दादा ने माथे पर सवालिया निशान बनाते हुए पूछा: तुम्हें कैसे पता? झम्मनलाल: क्या बात करते हो दादा, नाम तो नहीं पता, लेकिन एक शायर ने क्या खूब कहा है कि इश्क और मुश्क छुपाए नहीं छुपते हैं। दादा: अब बजट से इश्क और मुश्क का क्या ताल्लुक? झम्मनलाल: हां, वो तो मुझे भी नहीं पता, लेकिन बोल दिया तो बोल दिया। और एक बार जो मैं बोल देता हूं तो....खैर छोड़िए आज सल्लू की वांटेड फिल्म देख ली, तो थोड़ा फिल्मी हो गया। जिस तरह आपने बजट पेश कर दिया तो कर दिया। अब चाहे वो किसी को समझ में आए या न आए। चलिए मजाक से हटकर बात करता हूं।

दरअसल जब मैं आपके पास आ रहा था तो मुझे एक कॉमनमैन मिला। बेचारा बड़ा दुखी था। दादा: अब ये कॉमनमैन कौन है? झम्मनलाल: अरे आप कॉमनमैन को नहीं जानते? दादा: नहीं, झम्मनलाल: लेव कर लेव बात। दुनिया में एक कॉमनमैन ही तो है, जो सुनने में लगता है कि ही-मैन, सुपरमैन, बैटमैन या स्पाइडरमैन की तरह बड़ा ताकतवर होगा, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। ये लोग तो संकट आने पर मोचक बन जाते हैं, लेकिन कॉमनमैन हमेशा संकट के लिए रोचक बन जाता है। संकट को कॉमनमैन काफी पसंद है। जब देखों तब कॉमनमैन के पीछे पड़ा रहता है। भौतिक सुख इसके लिए भूत की तरह होते हैं। अगर आपका कभी अपने वायुयान या मोटर कार से पैदल सड़क पर घूमने का इत्तेफाक पड़े, तो किसी भी राह चलते आदमी से बात कर लेना। उससे पूछना, कैसे हो भाई? वो बोलेगा: अब क्या बताएं कैसे हैं, इतनी कम इनकम में कैसे बच्चों की पढ़ाई लिखाई होगी, महंगाई ने कमर तोड़ रखी है। मतलब यह कि कॉमनमैन हमेशा रोता मिलेगा। परेशानी इसके दाएं और मुसीबत इसके बाएं खड़ी रहती है। आप बुरा मत मानना, हो सकता है ये सरकार को गाली भी दे दे। आप कॉमनमैन को क्या जानो। जब कुर्सी पर बैठने का समय आता है, तो ये बिना चश्मे के आपको स्टेचू आॅफ लिबर्टी की तरह दूर से दिखाई पड़ जाते हैं। लेकिन सत्ता का चश्मा लगने के बाद आपकी दूर और पास दोनों की नजर खराब हो जाती है। फिर तो आपको अपने दामन के दाग भी दिकाई नहीं देते। चलो अब कौन बनेगा करोड़पति खेलना बंद करता हूं और सवाल-जवाब पर विराम लगाते हुए बताता हूं कि ये कॉमनमैन कौन है। कॉमनमैन मतलब भटकती आत्मा और धरती का बोझ। दादा ने आश्चर्यचकित होकर पूछा: मतलब! झम्मनलाल हंसते हुए: हाहाहा...क्या बताएं दादा, मजाक की थोड़ी आदत मुझे पड़ गई है। कॉमनमैन को हिंदी में कहते हैं आम आदमी। इसकी ''आमदनी'' में न तो ये कभी आम खा पाता है और उधार की ''देनी'' हमेशा इसके साथ जुड़ी रहती है। जो देश में सबसे ज्यादा तादाद में होते हुए भी कुछ खास लोगों में आम बना रहता है। चुनिंदा लोगों को खास बनाने में ये बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है। और तो और खास बनाने के बाद अपनी परेशानी को भूलकर जश्न भी मनाता है। बिल्कुल उसी तरह से जैसे बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना। अब देखिए आपको भी तो इसने आम से खास बनाया है। शुक्र मनाइए कि आम आदमी की याद्दाश्त बहुत कमजोर होती है।

बड़ी जल्दी पिछली बातों को भूल जाती है। वरना आप भी अबतक खास से आम बन गए होते। सुना है आपने इसकी जेब काट ली। अब क्या ये भी काम शुरू कर दिया? दादा: किसने कहा यह? मैं क्यों किसी की जेब काटूंगा? झम्मनलाल: अरे ये मैं थोड़ी कह रहा हूं। ये तो बाहर एक कॉमनमैन चिल्लाता जा रहा था कि दादा बजट की अटैची में कैंची लेकर संसद भवन गए थे, जिससे कॉमनमैन की जेब काटी गई। इन्हीं बातों के दरमियां एक आदमी चिल्लाता निकला सचिन ने शतकों का शतक पूरा कर लिया, सचिन ने शतकों का शतक पूरा कर लिया...उस आदमी को देखकर झम्मनलाल बोला: चलो शुक्र है कि इस देश में रुलाने वालों के अलावा कुछ खास लोग खुशी देने वाले भी हैं...शुक्रिया सचिन

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