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Tuesday 2 April 2013

कुछ तो बात होगी इन बंदों में

अन्ना हजारे जन्म 15 जून। अरविंद केजरीवाल, जन्म 16 जून। अ अक्षर से शुरू होने वाले इन दो नामों की जन्मतिथि की निकटता के अलावा अ शब्द से ही शुरू होता है आंदोलन। अन्ना, अरविंद और आंदोलन अब एक दूसरे के पूरक हो गए हैं। देश में कहने को तो सवा अरब से ज्यादा लोग रहते हैं, लेकिन सिर्फ ये दो नाम ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुनाई दे रहे हैं। जो काम विपक्ष को करना चाहिए , वो काम 75 साल के अन्ना और 44 साल के अरविंद कर रहे हैं। कुछ तो बात होगी इन बंदों में जिसकी वजह से प्रतिष्ठित पत्रिका टाइम ने दुनिया के प्रभावशाली लोगों में भारत से सिर्फ अरविंद केजरीवाल को ही चुना। अमेरिका के वार्टन इंडिया इकोनॉमिक फोरम ने लेक्चर के लिए केजरीवाल को आमंत्रित किया। भले ही सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन कर रहे अन्ना हजारे गलत नजर आ रहे हों, लेकिन यही भारत सरकार उन्हें पद्मश्री व पद्म भूषण सम्मान से नवाज चुकी है। दरअसल मौजूदा हालात में सरकार अन्ना और केजरीवाल से पूरी तरह घबराई हुई नजर आ रही है।

 23 मार्च से दिल्ली में बिजली-पानी के बढ़े बिल के खिलाफ केजरीवाल सविनय अवज्ञा आंदोलन कर रहे हैं। दिल्ली सरकार भले ही इसे 'फ्लॉप शो' मान रही हो, लेकिन लगभग आठ लाख लोगों का इस आंदोलन से जुड़ना व पौने तीन सौ आॅटो रिक्शा में आठ लाख चिट्ठियां ले जाया जाना इस बात की गवाही देता है कि दिन ब दिन सरकार की मुसीबतें बढ़ती जा रही हैं। इसी
क्रम में दिल्ली पुलिस का इन आंदोलनकारियों को गुमराह करके शीला दीक्षित के निवास से दूर करना ये दर्शाता है कि सरकार केजरीवाल से दहशत में है। केजरीवाल ने जिस अंदाज में शीला दीक्षित को चुनौती देते हुए कहा कि सरकार उन्हें रोकने की कोशिश न करे, शायद सरकार को ये नहीं पता कि हम किस मिट्टी के बने हुए हैं, उससे तो यही लगता है कि वो किसी भी तरह के समझौते के मूड में नहीं हैं। दिल्ली सरकार भी अब दोराहे पर खड़ी है, अगर केजरीवाल की बातों को मान लिया गया, तो दिल्ली की जनता की सहानुभूति उनकी आम आदमी पार्टी को मिलेगी, जो दिल्ली में कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकती है। दूसरी ओर, यदि आंदोलन के दौरान केजरीवाल को कुछ हो गया तब भी सरकार मुसीबत में पड़ सकती है।  दूसरी ओर अन्ना ने भी भ्रष्टाचार विरोधी जनआंदोलन के तहत पंजाब से देशव्यापी जनतंत्र यात्रा शुरू कर दी है।

यह यात्रा भी केंद्र व राज्य सरकारों के लिए मुसीबत बन सकती है और इतिहास गवाह है कि जो आंदोलन अन्ना ने चलाए हैं, उनमें चाहे राज्य हो या केन्द्र सरकार, दोनों को झुकना पड़ा है, चाहे 1991 का महाराष्ट्र भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन हो या सूचना का अधिकार कानून। बहरहाल, सरकार लोकसभा चुनाव से पहले अन्ना व केजरीवाल को कोई भी ऐसा मौका देना नहीं चाहती कि इसका असर उनकी सत्ता की दावेदारी पर पड़े। दूसरी ओर इन दो योद्धाओं ने देश की राजनीतिज्ञों से अकेले ही लड़ने का एक बार फिर मन बना लिया है।

2 comments:


  1. सार्थक प्रस्तुति . हार्दिक आभार नवसंवत्सर की बहुत बहुत शुभकामनायें हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

    BHARTIY NARI
    PLEASE VISIT .

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