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Sunday 19 February 2012

राष्ट्रीय शर्म



कितने शर्म की बात है कि दिल्ली में कोई पटाखा फोड़ गया। प्रधानमंत्री की तरफ से बयान आया कि कितनी शर्मनाक बात है। वैसे अपने देश में ऐसी कई घटनाएं हो जाती हैं, जो राष्ट्रीय शर्म का कारण बनती हैं। हमने अपने अंदर से  शर्मीला स्वभाव इस तरह से निकाल दिया है, जैसे मुलायम सिंह ने अमर सिंह को। देश में कुपोषण और भ्रष्टाचार बढ़ रहा है, इस पर भी प्रधानमंत्री कहते हैं कि कितने शर्म की बात है। कितने भी बड़े आतंकवादी हमले हो जाए, बयान एक ही होता है, कितने शर्म की बात है। शर्म भी ये बात सुन-सुनकर बोर हो गई है कि जब लोगों को शर्म नहीं आती है, तो बार-बार उस पर आरोप लगाकर उसे बदनाम क्यों किया जा रहा है। शर्म ने भी कोर्ट में अर्जी दाखिल करने का मन बना लिया है कि हर घटना राष्ट्रीय शर्म की बात क्यों होती है। करता कोई और है और आरोप शर्म पर लगाए जाते हैं। मेरा सबसे ज्यादा नुकसान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ने किया है। मुझे दरकिनार करके इसका सहारा लेकर कुछ भी बोल और कर दिया जाता है। कर्नाटक की विधानसभा में मंत्री पोर्न फिल्म देखते हैं और आरोप शर्म पर मढ़ दिया जाता है। आज जो शर्म की जो बात की जा रही है, असल में वो अब रही कहां। किसी लड़की को कोई लड़का छेड़ता है, तो उसका कहना होता है कि शर्म नहीं आती। इसी तरह नेताओं को झूठे वादे करने में शर्म नहीं आती, बालिकाओं को अधनंगे कपड़े पहनने में शर्म नहीं आती, सरकार को जनता का धन अपनी दानवकद मूर्तियां लगवाने में शर्म नहीं आती, प्रशासन को बिगड़ती सामाजिक व्यवस्था देखकर शर्म  नहीं आती और पुलिस को बढ़ते अपराध देखकर शर्म नहीं आती। शर्म का तर्क है कि जब मैं किसी के साथ जुड़ी नहीं हूं, तो मुझे खामखा बदनाम क्यों किया जा रहा है। प्रधानमंत्री या किसी भी मंत्री को बोलने से पहले ये सोच लेना चाहिए कि यहां पर सभी ने ये मुहावरा आत्मसात कर रखा है, 'जिसने की शर्म, उसके फूटे कर्म'। मुझे तो लगता है कि मेरा नाम शर्म है, इसलिए मेरे कर्म ज्यादा फूटे हैं। जब सब बेशर्म हो गए हैं तो शर्म का क्या काम। मैं तो वैसे भी दुनिया से विलुप्त होती जा रही हूं। मेरे संरक्षण की किसी को भी फिक्र नहीं है। देश में टाइगर को बचाने की मुहिम चल रही है, कन्याओं को बचाने की मुहिम चल रही है और न जाने किसे-किसे बचाने की मुहिम चल रही है, लेकिन मुझे बचाने की किसी को भी फिक्र नहीं है। ये भी एक राष्ट्रीय शर्म की बात हो सकती है। देखा जाए तो देश से क्या पूरी दुनिया से शर्म पतली गली से निकल ली है। जहां आतंकियों को कहीं भी विस्फोट करने में शर्म नहीं है, तो एटमी हथियार का हव्वा खड़ा करके, किसी भी देश में कब्जा जमाने में अमेरिका को शर्म नहीं आती है। इतना सबकुछ ये दुनिया वाले करते हैं और फिर कहते हैं कि ये एक राष्ट्रीय शर्म की बात है। शुक्र है यही दुनिया के रखवाले ही मुझे इलेक्शन में वोटर की तरह याद कर लेते हैं। वैसे मेरी जगह बेशर्मी ने ले ली है। जहां देखों वहां आपको बेशर्मी खड़ी मिल जाएगी, चाहे वो गली हो, गांव हो, शहर हो, शादी हो, पार्टी हो, मनोरंजन हो, राजनीति हो, खेल हो, जेल हो या फिर किसी आइटम की सेल हो। अब तो मुझे ही अपना दुखड़ा रोते-रोते शर्म आ गई। शायद मेरी व्यथा सुनने के बाद किसी को शर्म आ जाए।

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