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Monday 27 February 2012

जनता का स्वयंवर

आसिफ इकबाल
लोकतंत्र के जश्न की चुनावी धुन पर सभी मगन हैं। क्या छोटे, क्या बड़े सभी उत्साह से एक ही लाइन में बटन दबाने के लिए खड़े। वोटिंग के लिए उत्साह इतना कि लाइन की धक्का मुक्की से आपस में ही लड़े। इसके बाद पीछे से सुरक्षाबलों के डंडे भी झेलने पड़े। घर आने पर वहीं पुराने भाषण सुनने पड़े, क्या मिला तुम्हें वहां खड़े-खड़े? बर्बाद हो गए इस चक्कर में बड़े-बड़े। अब साफ करो बर्तन जो सुबह से हैं गंदे पड़े। अब वो नेता कहां रहे भाई? आजादी के बाद बापू जो सादगी, ईमानदारी, टोपी, चश्मा और डंडा देश के नेताओं को दे गए थे, तो सादगी देश के विकास में देखने को मिलती है और ईमानदारी स्विस बैंक में सेफ है। टोपी तो नेताओं ने जनता को पहना रखी है और चश्मे पर भ्रष्टाचार की कालिख पुत गई है। बचा डंडा, तो उसे आम आदमी की सेवा में लगा रखा है। कुछ नौजवान नेता अन्ना की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को चीटिंग मान इसकी खिलाफत कर रहे हैं। उनका कहना है कि जब देश को लूटने का उनका नंबर आया, तो अन्ना भ्रष्टाचार पर पाबंदी लगाने के लिए आंदोलन करने बैठ गए। भई मामला थोड़ा टेलीविजन टाइप का है। जैसे राखी सावंत ने टेलीविजन में स्वयंवर रचाकर अपने लिए दुनिया का सबसे सुंदर, सुशील, संस्कारी और धनी वर का चुनाव करके ये साबित किया था कि उन्हें दुनिया का सबसे योग्य वर मिल गया है। लेकिन कुछ ही दिनों बाद वहीं सुंदर, सुशील, संस्कारी और अमीर अचानक 'सुंदर से बंदर', 'सुशील से जलील', 'संस्कारी से व्याभिचारी' और 'अमीर से फकीर' हो गया। फिर किस्मत ने मारी लात, तो उछल पड़ी बारात। बात को अन्ना के आंदोलन की तरह लंबा न खींचते हुए मुद्दे पर आता हूं। दरअसल, यूपी में चुनावी बयार बह रही है। प्रदेश की स्थिति कुछ राखी सावंत के स्वयंवर की तरह हो गई है। यहां जनता बनी है राखी सावंत और सरकार बनी है भावी वर। जनता इस चुनावी स्वयंवर के जरिए अपने भावी पति का चुनाव हर तरह से ठोक-बजाकर कर रही है। सभी दलों ने अपने उम्मीदवार रूपी दागी दूल्हों को काले धन की तरह खोपचे में छिपा दिया है और नौजवान, सुंदर, सुशील, संस्कारी दूल्हों को इस स्वयंवर में जनता रूपी दुल्हन को अपने आगोश में लेने के लिए उतार दिया है। जनता को पूरी उम्मींद है कि भावी पति उसकी अच्छी तरह से देखभाल करेगा, उसका भविष्य सुधारेगा। खैर अभी तो स्वयंवर टेलीविजन के एपीसोड की तरह चल रहा है। कुछ दिन बाद जनता वोटमाला पहनाकर अपना दूल्हा चुन लेगी। कुछ दिनों, महीनों या सालों बाद जनता को पता चलेगा कि उसने जिस पति में दुनिया की सारी खूबी देखीं, वो तो उसकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा है। राखी सावंत ने कुछ ही दिनों में सगाई के बाद वर में बुराई देखकर रिश्ता तोड़ लिया था, लेकिन राखी रूपी जनता को अगले पांच साल तक इंसाफ करने का मौका नहीं मिलेगा। फिर कौन करेगा 'राखी का इंसाफ?' पांच साल तक तो उसे सरकार रूपी पति की मनमानी को अन्ना के मौन व्रत की तरह चुपचाप रहकर सहना पड़ेगा। बेचारी जनता तो राखी की तरह बेशर्म है नहीं, जो मीडिया भी उसकी बात रख सके। जनता अपनी वोटमाला उसी वर के गले में डाले,जो उसका उसी तरह ख्याल रख सके,जैसे किसी दल की सरकार होने पर इंसान से ज्यादा जानवरों (हाथियों) का रखा जाता है।



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