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Thursday 17 July 2014

एक नजम लिखते हैं...

चलो हम तुम मिलकर एक नजम लिखते हैं
शब के कोयले से दीवार-ए-वादों पर कसम लिखते हैं

वक्त की बारिश भी धो न पाये इस इबारत को
कुछ ऐसी ही त्वारीख इस जनम लिखते हैं


फलक से समेट लेते हैं चांद तारों को
हर एक पर नाम-ए-सनम लिखते हैं

ख्वाहिशों की पतंग खूब ढील देके तानो
ऐसे खुले आसमान किस्मत से कम मिलते हैं

अश्कों को डाल आएं गहरे समंदर में
गमों के दरिया भी जाकर वहीं मिलते हैं

वफाओं की पोशाक से होगी हिफाजत हमारी
इश्क की वादी में मौसम भी रुख बदलते हैं

कहीं कलम न हो जाए मोहब्बत से खाली 'अरमान'
यही तो सोचकर जवाब में नफरतें कम लिखते हैं...

19 comments:

  1. आपकी लिखी रचना बुधवार 19 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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    1. आपका आभार यशोदा जी,,,

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    2. गलती हो गई मुझसे प्रतिक्रया को फिर से पढ़ें
      आपकी लिखी रचना शनिवार 19 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
      http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  2. Beautiful Thought....

    आप जैसे बड़े लेखक की कुछ सीखना चाहती हूँ

    कृपया मार्गदर्शन दे। धन्यवाद!!

    http://swayheart.blogspot.in/

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    1. राजश्री जी मैं कोई बड़ा लेखक या शायर नहीं हूं, ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है जो मेरा लेखन पसंद आया,,,सादर आभार,,,

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  3. बहुत ही बढ़िया

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    1. सादर आभार यश जी,,,

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  4. सादर आभार प्रतिभा जी,,,

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  5. ख्वाहिशों की पतंग खूब ढील देके तानो
    ऐसे खुले आसमान किस्मत से कम मिलते हैं

    अश्कों को डाल आएं गहरे समंदर में
    गमों के दरिया भी जाकर वहीं मिलते हैं
    बेहतर प्रस्तुति

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    1. आपका आभार डा० साहब,,

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  6. बहुत खूबसूरत हैं सभी शेर अरमान जी ...

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  7. सादर आभार दिगंबर जी,,,

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  8. Khubsurat gazal...... Likhate rahiye yun hi

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  9. बहुत सुंदर रचना...प्रेम को समर्पित भाव

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