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Saturday 26 July 2014

कभी सुना है तुमने यादों को

कभी सुना है तुमने यादों को
 ख़ूब हंसती हैं, ख़ूब रोती हैं
 कभी महफ़िल, तो कभी तन्हाई में बोलती हैं
हां, शायद तुमने भी सुना होगा
 कल ही तो आईं थीं तुम्हारे ज़हन के कोठे पर
 पानी लेकर आईं थी अश्कों की झील से
सहर तकिए पर पड़ी थी कुछ बूंदे
अरे वो देखो तुम्हारे पुराने मकां में कौन है
बचपन तुतलाकर कुछ कहना चाहता है
किसी की उंगली पकड़कर लड़खड़ाते कदम किसके हैं
दीवारों की तख़्ती मुंह चिढ़ा रही हैं
नन्हे हाथों के हरफ़ मुस्कुरा रहे हैं
सच है, बच्चा तो हूं मैं,
सब कहते हैं, बच्चों जैसी बातें करता हूं
बड़ी हमदर्द होती हैं ये यादें
जब कभी तबियत नासाज़ हो जाती है
परदेस में बैठी मां को साथ ले आती हैं
तसल्ली हो जाती है अपनों को करीब पाकर
बड़ी बड़बोली भी होती हैं यादें
बिना बताए बेधड़क चली आईं
और झोले से निकालकर बैठ गईं अपना चिट्ठा
सफ़े पर मेरी ख़ूबसूरत मोहब्बत अंगड़ाई ले रही थी
वैसी ही है जैसे छोड़कर आया था
पाकीज़ा, शर्मीली, सादगी की ज़िंदगी जी रही थी
इंतज़ार की चुनरी का रंग भी नहीं उतरा था
शायद उसके 'अरमान' की मोहब्बत का रंग गहरा था...

20 comments:

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    1. धन्यवाद जोशी जी,,,सादर आभार,,,

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  2. यादों का बहुत खूबसूरत चित्रण किया है आपने।।।
    बधाई।।।

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  3. यादो की मिठास लिए खूबसूरत ग़ज़ल अरमान जी

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    1. सादर धन्यवाद स्मिता,,,

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  4. नाज़ुक जज्बातों को बड़ी ही खूबसूरती के साथ नज़्म में पिरोया है ! बहुत ही उम्दा प्रस्तुति !

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    1. सादर आभार साधना जी,,,

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  5. यादें बिन बताये ... बिन जतलाये ही आती हैं ... बताती नहीं किस किस को साथ लाती हैं ...
    गहरा एहसास लिए ...

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    1. बेशक दिगंबर जी,,,सादर आभार

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  6. मीठी यादें उन मधुर सपनों के सदृश्य होती हैं, लगता है जिन्हें देखते रहें, इनको भी बस याद करते रहें , उम्दा प्रस्तुति

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    1. सादर आभार डॉ. साहब...

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  7. aap ke blog ka rang kuchh aur kar le achha lagega othervise mat le .

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  8. बहुत सुंदर रचना सीधे दिल से निकली अनुभूतियाँ. बधाई.

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  9. बच्चों जैसा बने रहने में जितना सुकूं हैं वह बड़े होने में नहीं ... यादों पर किसी का जोर नहीं कब आये कब जाए

    बहुत सुन्दर

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    1. सादर आभार कविता जी

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  10. धन्यवाद भास्कर जी

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