www.hamarivani.com

Thursday 10 July 2014

एक पल भी तेरे बिना जिया न जाए

तेरा तस्व्वुर मेरा जहन महका जाए
एक पल भी तेरे बिना जिया न जाए
गम-ए-जुदाई का आलम न पूछो
जैसे सांसों को जिस्म से जुदा किया जाए

लम्हें-लम्हें में बसे हो तुम
हौले-हौले से कुछ कहते हो तुम
चलो अब फासलों को मुख्तसर किया जाए
एक पल भी तेरे बिना जिया ना जाए

दिन-रातों के बड़े-बड़े समंदर हैं
जितने गम बाहर उतने अंदर हैं
शायद मेरी आवाज तेरे कानों तक जाए
एक पल भी तेरे बिना जिया न जाए

रुतबा तो आपकी जुदाई का बुलंद है
आपकी अदाएं भी बड़ी हुनरमंद है
'अरमान' भी खड़ा है मोहब्बत में सिर झुकाए
एक पल भी तेरे बिना जिया न जाए

6 comments:

  1. भावों की बेहतरीन अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  2. सादर धन्यवाद अनुषा

    ReplyDelete
  3. अनुपम शब्‍द संयोजन ....

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपका आभारी हूं, जो आप मेरे ब्लॉग में तशरीफ लाए...सादर धन्यवाद संजय जी।

      Delete
  4. Khubsurat shabd malaa....

    ReplyDelete