तेरा सफ़र, मेरा सफ़र
चलते रहें यूं बेख़बर
किस बात का हमको हो डर
कैसी भी हो अपनी डगर
मेरे हाथ में तेरा हाथ हो
मंज़िल तलक ये साथ हो
कदमों के हों इक ही निशां
जैसे ज़मी और आसमां
बातों में भी तेरा ज़िक्र हो
किस बात की फिर फिक्र हो
थामो मुझे गिर जाऊं जो
खो जाऊं मैं न पाऊं तो
बस इक यही अरमान हो
हम दो बदन इक जान हों...
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