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Sunday 3 June 2018

न जाने क्या दिन-रात सोचता है

न जाने क्या दिन-रात सोचता है
मुझको ये शहर पल-पल नोचता है
दौड़ता फिरता है किसकी तलाश में
जागता रहता है क्यों नहीं सोता है

ज़िंदगी जीने के लिए गांव छोड़ आए
मां-बाप के दुआओं भरे हाथ छोड़ आए
ख़्वाब लेकर आ गए पर नींद छोड़ आए
ख़ुद को पाने के लिए क्या-क्या खोता है
जागता रहता है क्यों नहीं सोता है

न दिखते चौखट पे कोई रंग न रंगोली
न आती नज़र मोहल्ले की हंसी ठिठोली
न दिखती खेतों की वो सूरत भोली
आंख में रह-रह कर नश्तर चुभोता है
जागता रहता है क्यों नहीं सोता है

छत तो मिल गई पर घर कहां है
बुज़ुर्गों की गाली का डर कहां है
मिल जाए जितना उसमें सबर कहां हैं
हो ज़रूरत तो कोई पास कहां होता है
जागता रहता है क्यों नहीं सोता है...

#अरमान

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