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Sunday 3 June 2018

धूल हूं तो क्या हुआ ज़मीं की हूं बोझ नहीं

धूल हूं तो क्या हुआ
ज़मीं की हूं बोझ नहीं

उड़ती हूं हवाओं संग
ज़र्रे-ज़र्रे में मेरा रंग
ख़त्म होती नहीं
वजूद खोती नहीं
आसमां से भी गिरकर
हंसती हूं, रोती नहीं
हां, धूल हूं तो क्या हुआ
ज़मीं की हूं बोझ नहीं

रहती हूं लिपटकर
जबतक जो साथ चाहे
कोई ग़म भी नहीं
गर मुझे हटा दे
हां, धूल हूं तो क्या हुआ
ज़मीं की हूं बोझ नहीं

तुम क्या जानो मुझे 'अरमान'
मैं ख़ूद को ख़ूब समझती हूं
जूतों से मारते हो ठोकर
माथे पर चंदन सी चमकती हूं
हां, धूल हूं तो क्या हुआ
ज़मीं की हूं बोझ नहीं
#अरमान

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