www.hamarivani.com

Sunday 3 June 2018

इक शहर है अंजाना सा

इक शहर है अंजाना सा
मेरे मन में बसता है
इक चेहरा है चंदा सा
परदे में हंसता है

इक बात है अनकही सी
हर तरफ़ गूंजती है
इक नज़र है पगली सी
किसी खोए को ढूंढती है

इक रात है काली सी
जो ख़त्म नहीं होती
एक झील है गहरी सी
दिन रात है डुबोती

इक गली है धुंधली सी
जो सूनी सी है रहती
इंतज़ार में किसी के
खोई सी है रहती

इक ख़ामोशी है लंबी सी
न सुनता न कोई कहता है
अंजान इस शहर में
इक शख़्स अकेला रहता है..
#अरमान

No comments:

Post a Comment