इक शहर है अंजाना सा
मेरे मन में बसता है
इक चेहरा है चंदा सा
परदे में हंसता है
इक बात है अनकही सी
हर तरफ़ गूंजती है
इक नज़र है पगली सी
किसी खोए को ढूंढती है
इक रात है काली सी
जो ख़त्म नहीं होती
एक झील है गहरी सी
दिन रात है डुबोती
इक गली है धुंधली सी
जो सूनी सी है रहती
इंतज़ार में किसी के
खोई सी है रहती
इक ख़ामोशी है लंबी सी
न सुनता न कोई कहता है
अंजान इस शहर में
इक शख़्स अकेला रहता है..
#अरमान
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